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मत कहो आप दौरे गुरबत है ।
चश्मेतर हूँ ये वक्ते फुरकत है ।।
कुछ तो भेजी खुदा ने आफ़त है ।
ये तबस्सुम है या क़यामत है ।।
उसकी किस्मत को दाद देता हूँ ।
जिसको हासिल तुम्हारी कुर्बत है ।।
अलविदा मत कहें हुजूर अभी ।
बज़्म को आपकी ज़रूरत है ।।
इश्क़ में क्या बताऊँ मैं तुमको ।
थोड़ी उल्फ़त है बाकी तुहमत है ।।
ख्वाहिशें सबकी अपनी अपनी हैं ।
हाशिये पर यहाँ मुहब्बत है ।।
कैसे आज़ाद कह दूं मैं खुद को ।
दिल पे अब तक तेरी हुक़ूमत है ।।
फिक्र मुझको रक़ीब की तब तक ।
हुस्न जब तक तेरा सलामत है ।।
कुछ तो इल्ज़ाम मुझ पे आएगा ।
ये तो दुनिया है इसकी आदत है ।।
तब मिली है शिकस्त आंखों ।को ।
जब भी अश्क़ों ने की बगावत है ।।
ख्वाहिशें सबकी अपनी अपनी हैं ।
हाशिये पर यहाँ मुहब्बत है ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
Comment
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
'कुछ तो भेजी खुदा ने आफ़त है ।
ये तबस्सुम है या क़यामत है'
इस मतले के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,देखियेगा ।
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