हमारे इल्म का वो क़द्रदान थोड़ी है ।
हमें दे रोटियां कोई महान थोड़ी है ।।
उसे है बेचना हर ईंट इस इमारत की ।
हुज़ूर मुफ़्त में वो मिह्रबान थोड़ी है ।।
विकास सब का हो और साथ भी रहे सबका ।
ये राजनीति है पक्की ज़ुबान थोड़ी है ।।
लुढ़क रहे हैं ख़ज़ाने ये फ़िक्र कौन करे ।
नज़र में उनके अभी तक ढ़लान थोड़ी है ।।
बदल गया है बहुत कुछ यहां सँभल के चलो ।
पुराना वाला ये हिंदोस्तान थोड़ी है ।।
मशीन वोट की कर देगी फैसला हक़ में ।
तुम्हारे हाथ में सारी कमान थोड़ी है ।।
बहा ले जायेंगी मौजें तुम्हें समंदर की ।
तुम्हारे वास्ते ऊँचा मचान थोड़ी है ।।
उड़ान कैसे भरेंगे नए परिंदे ये।
अब उनके नाम कोई आसमान थोड़ी है ।।
जो मन में आए वही कीजिये यहाँ साहब ।
अभी चुनाव का आया रुझान थोड़ी है ।।
- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
Comment
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।
'अभी चुनाव का आया रुझान थोड़ी है'
इस मिसरे में क़ाफ़िया ग़लत है,सहीह शब्द है "रुजहान", देखियेगा ।
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