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2122 2122 212

जाने कैसी तिश्नगी है ज़िंदगी ।
ख्वाहिशों की बेबसी है जिंदगी ।।

हर तरफ़ मजबूरियों का दौर है ।
ज़ह्र कितना पी रही है जिंदगी ।।

फ़िक्र किसको है सियासत तू बता ।
भूख से दम तोड़ती है जिंदगी ।।

दर्दो ग़म मत पूछिए मेरा सनम ।
बेवफ़ा सी हो गयी है ज़िन्दगी ।।

इस वबा के जश्न में तू देख तो ।
क्यूँ बहुत सहमी हुई है ज़िन्दगी ।।

है तबाही का नया मंज़र यहां ।
रोटियों को ढूँढती है ज़िंदगी।।

इंतकामी हौसलों के साथ में ।
मुन्तज़िर होकर खड़ी है ज़िंदगी ।।

वो सुख़नवर दर्द से महरूम हैं ।
कह रहे जो इक ख़ुशी है ज़िन्दगी ।।

बारहा पढ़ते रहे हम उम्र भर ।
वक्त की इक शाइरी है ज़िंदगी ।।

ये न पूछें आप मुझसे हिज़्र में ।
किस तरह मेरी कटी है ज़िन्दगी ।।

मौत के सागर से होना वस्ल है ।
देखिये बहती नदी है ज़िंदगी ।।

- डॉ नवीन मणि त्रिपाठी

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Comment

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Comment by सालिक गणवीर on April 28, 2020 at 8:54am
मौत के सागर में होना वस्ल है.. वाह. सुंदर रचना. हार्दिक बधाइयाँ.

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