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निगाहों से हुई कोई ख़ता है ।
जो दिल तुझसे वो तेरा मांगता है ।।
रवानी जिस मे होती है समंदर ।
उसी दरिया से रिश्ता जोड़ता है ।।
हमारी ज़िन्दगी को रफ्ता रफ्ता ।
कोई सांचे में अपने ढालता है ।।
तुम्हारे हुस्न के दीदार ख़ातिर ।
यहाँ शब भर ज़माना जागता है ।।
कभी तुम हिचकियों से पूछ तो लो ।
तुम्हे अब कौन इतना चाहता है ।।
ठहर जाती हैं नज़रें बस वहीँ पर ।
दरीचे से वो जब भी झांकता है ।।
बरसने की जवां होती है ख्वाहिश ।
ये बादल जब ज़मीं को देखता है ।
नहीं सँभलेगा उससे दिल हमारा ।
जो डोरे रोज़ हम पर डालता है ।।
यकीनन वाम पे उतरेगा चंदा ।
वो हाले दिल हमारा जानता है ।।
न जाने कैसी है ये कहकशां भी।
सितारा हो के रुस्वा टूटता है ।।
मुक़द्दर जब बुरा होता है यारो ।
कोई अपना कहाँ पहचानता है ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी
Comment
आ. भाई नवीन जी, सादर अभिवादन । अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
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