सच सच बोलो आओगी ना
जब सूरज पूरब से पश्चिम
तक चल चल कर थक जाएगा
और जहाँ धरती अम्बर से
मिलती है उस तक जाएगा
चारो ओर सुनहला मौसम
और सुनहली लाली होगी
और लौटते पंछी होंगें
खेत-खेत हरियाली होगी
दिन भर के सब थके थके से
अपने घर को जाते होंगे
कभी झूम कर कभी मन्द से
पवन बाग लहराते होंगे
तुम भी उसी बाग के पीछे
आकर उसी आम के नीचे
झूम-झूम कर मेरे ऊपर
तुम खुद को लहराओगी ना
सच सच बोलो आओगी ना
जब बसन्त में भाँति-भाँति के
सुंदर-सुंदर फूल खिलेंगें
और प्रणय के इस मौसम में
नेह मेह अनुकूल मिलेंगें
अनुकूलन के इस मौसम में
जब आम-आम बौराएँगे
जब बाग-बाग में कली-कली
भौंरे-भौंरे मड़राएँगे
जब-जब शाखों पर मस्ती में
कोयलें कुँहुक कर गाएँगीं
और ओस की बूँदे गिरकर
चाँदी की सी बन जाएँगीं
बोलो प्रिये ताल के पीछे
हाँ-हाँ उसी आम के नीचे
मेरी बाहों के घेरे में
सुंदर गीत सुनाओगी ना
सच सच बोलो आओगी ना
मौलिक एवं अप्रकाशित
आशीष यादव
Comment
आदरणीय श्री Samar kabeer साहब जी रचना पसंद करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। आप लोगों की हौसला अफजाई मुझे और लिखने के लिए प्रेरित करती रहेगी।
आदरणीय श्री रवि भसीन 'शाहिद' जी बहुत बहुत धन्यवाद।
जनाब आशीष यादव जी आदाब,अच्छी रचना हुई है,बधाई स्वीकार करें ।
बहुत बढ़िया आशीष यादव जी, इस सुन्दर रचना पर आपको बधाई!
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