For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

 यू तो हम आईने पे मरते थे,

फिर भी हम आईने से डरते थे   

रोज़ किस्से हज़ारो बातें भी ,
जाने क्यों आईने से करते थे .. 

राज़ दिल के कितने हों गहरे 
आईने से बताया करते थे . 


 
वो मुझे रोज़ कुछ न कुछ कहता , 
गौर हर बात पे हम करते थे  

मन के  पहलू तराशता सारे
हम खुद को सजाया करते थे  

मेरा हमराज़ था आईना शायद.. 
इसीलिए आईने से डरते थे  


Views: 1716

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Lata R.Ojha on July 7, 2011 at 11:46pm
@ Ganesh ji : dhanyvaad Ganesh ji ,avashy hi dhyaan doongi aapke sujhaav par :)
Comment by Lata R.Ojha on July 7, 2011 at 11:45pm
@ Shyamal Suman ji : Aap sabhi ki shubhkaamnaen aur behtar likhne ko prerit aur utsaahit karti hain. Achchha lagta hai jab dhyaan se padh ke meri abhivyktiyon ko, kabhi koi sujhaav milta hai to.punah aabhaar :)

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 7, 2011 at 8:35am

लता जी , भाव खुबसूरत है, कथ्य में जान है, ग़ज़ल शिल्प की दृष्टी से कुछ कमियां है, एक ही काफिया को एक से अधिक शे'र में दोहराना अच्छा नहीं माना जाता, मतला मीटर में है किन्तु उस मीटर का पालन अन्य शेरों में नहीं हो पाया है |

तिलक सर की ग़ज़ल कक्षा देखे मदद मिलेगा | भावपूर्ण रचना हेतु बधाई आपको |

Comment by Shyamal Suman on July 7, 2011 at 5:51am

प्रिय लता जी - ख़ुशी हुई आपके विचारों को जानकार - मैं अब तक प्राप्त अपने ज्ञान के साथ छल नहीं कर सकता - एक तो जल्दी टिप्पणियां नहीं देता हूँ - क्योंकि टिपण्णी बेबाकी से देने से कितने लोगों को बुरा भी लगता है - लेकिन जहाँ सम्भावनाएं अच्छी देखता हूँ वहां कलम ('सारी' - आजकल 'की बोर्ड') रूकती नहीं है. मेरा मानना है की भले कम लिखें लेकिन दुरुस्त लिखें ताकि समाज में और बेहतरी आ सके और लेखन की सार्थकता बनी रहे - शुभकामनाओं के साथ - 
सादर
श्यामल सुमन
09955373288

$#@#@$%%$#@#$%%$#@@

%$#@$$&^%$$#@#$%%^^%$

@$^$#%$^^%#^%%#$%%%$#


Comment by Lata R.Ojha on July 6, 2011 at 11:21pm
@ Shyamal Suman ji : jee haan kisse hi likhne ka prayatn kiya kintu ya to kise athva kis se hi aaraha tha Hindi mein atah kise hi rahne dia. Aapke sabhi sujhaav mere liye bahut hi gyaanvardhak hain. mujhe baareekiyon ka gyaan nahi so bas prayaas kia hai ye :) aasha hai galtiyon k liye kshama karenge :) aur bhavishy mein bhi aise hi maargdarshan karte rahenge :) punah aabhar
Comment by Lata R.Ojha on July 6, 2011 at 11:17pm
@ Arvind chaudhari ji : Aapka saadar dhanyvaad :)
Comment by Shyamal Suman on July 6, 2011 at 6:00pm
खूबसूरत भाव को आईने के माध्यम से कहने की कोशिश की है लता जी. बहुत खूब.

मुझे लगता है की दूसरे शेर में "किसे" की जगह आप "किस्से" तो नहीं लिखना चाहतीं थीं? जरा देख लीजियेगा. पांचवें शेर का पहला मिसरा
कितने पहलू तराशता था वो मेरे मन के" पर भी काम करने की जरूरत है मेरे हिसाब से. जैसे " मन के पहलू तराशता सारे" या और कुछ आपकी पसंद से - इसे भी  देख लें.   सबसे अंतिम शेर में से बाद का जो "मेरा" है उसे हटा देने से ठीक  हो  जाएगा. उम्मीद है अन्यथा नहीं लेंगी.
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
Comment by Arvind Chaudhari on July 6, 2011 at 9:25am
क्या बात है !
उम्दा ग़ज़ल

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service