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 यू तो हम आईने पे मरते थे,

फिर भी हम आईने से डरते थे   

रोज़ किस्से हज़ारो बातें भी ,
जाने क्यों आईने से करते थे .. 

राज़ दिल के कितने हों गहरे 
आईने से बताया करते थे . 


 
वो मुझे रोज़ कुछ न कुछ कहता , 
गौर हर बात पे हम करते थे  

मन के  पहलू तराशता सारे
हम खुद को सजाया करते थे  

मेरा हमराज़ था आईना शायद.. 
इसीलिए आईने से डरते थे  


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Comment

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Comment by Lata R.Ojha on July 7, 2011 at 11:46pm
@ Ganesh ji : dhanyvaad Ganesh ji ,avashy hi dhyaan doongi aapke sujhaav par :)
Comment by Lata R.Ojha on July 7, 2011 at 11:45pm
@ Shyamal Suman ji : Aap sabhi ki shubhkaamnaen aur behtar likhne ko prerit aur utsaahit karti hain. Achchha lagta hai jab dhyaan se padh ke meri abhivyktiyon ko, kabhi koi sujhaav milta hai to.punah aabhaar :)

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 7, 2011 at 8:35am

लता जी , भाव खुबसूरत है, कथ्य में जान है, ग़ज़ल शिल्प की दृष्टी से कुछ कमियां है, एक ही काफिया को एक से अधिक शे'र में दोहराना अच्छा नहीं माना जाता, मतला मीटर में है किन्तु उस मीटर का पालन अन्य शेरों में नहीं हो पाया है |

तिलक सर की ग़ज़ल कक्षा देखे मदद मिलेगा | भावपूर्ण रचना हेतु बधाई आपको |

Comment by Shyamal Suman on July 7, 2011 at 5:51am

प्रिय लता जी - ख़ुशी हुई आपके विचारों को जानकार - मैं अब तक प्राप्त अपने ज्ञान के साथ छल नहीं कर सकता - एक तो जल्दी टिप्पणियां नहीं देता हूँ - क्योंकि टिपण्णी बेबाकी से देने से कितने लोगों को बुरा भी लगता है - लेकिन जहाँ सम्भावनाएं अच्छी देखता हूँ वहां कलम ('सारी' - आजकल 'की बोर्ड') रूकती नहीं है. मेरा मानना है की भले कम लिखें लेकिन दुरुस्त लिखें ताकि समाज में और बेहतरी आ सके और लेखन की सार्थकता बनी रहे - शुभकामनाओं के साथ - 
सादर
श्यामल सुमन
09955373288

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Comment by Lata R.Ojha on July 6, 2011 at 11:21pm
@ Shyamal Suman ji : jee haan kisse hi likhne ka prayatn kiya kintu ya to kise athva kis se hi aaraha tha Hindi mein atah kise hi rahne dia. Aapke sabhi sujhaav mere liye bahut hi gyaanvardhak hain. mujhe baareekiyon ka gyaan nahi so bas prayaas kia hai ye :) aasha hai galtiyon k liye kshama karenge :) aur bhavishy mein bhi aise hi maargdarshan karte rahenge :) punah aabhar
Comment by Lata R.Ojha on July 6, 2011 at 11:17pm
@ Arvind chaudhari ji : Aapka saadar dhanyvaad :)
Comment by Shyamal Suman on July 6, 2011 at 6:00pm
खूबसूरत भाव को आईने के माध्यम से कहने की कोशिश की है लता जी. बहुत खूब.

मुझे लगता है की दूसरे शेर में "किसे" की जगह आप "किस्से" तो नहीं लिखना चाहतीं थीं? जरा देख लीजियेगा. पांचवें शेर का पहला मिसरा
कितने पहलू तराशता था वो मेरे मन के" पर भी काम करने की जरूरत है मेरे हिसाब से. जैसे " मन के पहलू तराशता सारे" या और कुछ आपकी पसंद से - इसे भी  देख लें.   सबसे अंतिम शेर में से बाद का जो "मेरा" है उसे हटा देने से ठीक  हो  जाएगा. उम्मीद है अन्यथा नहीं लेंगी.
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
Comment by Arvind Chaudhari on July 6, 2011 at 9:25am
क्या बात है !
उम्दा ग़ज़ल

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