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हंसना मना है,,,,,,,,

सामान एक से एक, आला दहेज़ में मिला !
बहरी बीबी गूंगा, साला मिला है दहेज़ मॆं !!१!!

एक आंख नकली है,एक टांग सॆ भी लंगड़ा,
है रंग चॊखा भुजंग काला, मिला है दहॆज़ मॆं !!२!!

नागिन कॊ मात दॆती हैं मॆरी तीनॊं सालियां,
ससुरा भी नशॆड़ी मतवाला,मिला है दहॆज़ मॆं !!३!!

मॆज़बानी मॆं पहलॆ दिन, दारू ठर्रा मिली थी,
बिदाई मॆं एक पटियाला, मिला है दहॆज मॆं !!४!!

दहेज की रकम से सारा कर्जा निपट जाता,
ससुरा तो खुद कर्ज़ वाला,मिला है दहेज़ मॆं !!५!!

शादी रचा के सोचा था, दीवाली मनायॆंगॆ,
दीवाली के बदलॆ दिवाला,मिला है दहॆज़ मॆं!!६!!

कूलर,टी.बी.,फ़्रिज,पलंग शो-केश कुछ नहीं,
बस एक चावी एक ताला,मिला है दहॆज़ मॆं !!७!!

ससुर सालों ने मिलके,ज़िंदगी की बजा दी,
उसका यार पड़ोसवाला,मिला है दहेज़ मॆं !!८!!

फ़ोटो दिखाके वालिद ने दाल अपनी गलाई,
मगर दाल मे सब काला, मिला है दहेज़ में !!९!!

भारत मॆं भ्रष्टाचार की जड़ॆं बॆहद मजबूत हैं,
ससुराल मॆं भी घॊटाला, मिला है दहॆज मॆं !!१०!!

इसी मॆ संतॊष है"राज़" हमकॊ कम सॆ कम,
बहरी बीबी गूंगा साला, मिला है दहॆज़ मॆं !!११!!

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Comment

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Comment by Saurabh Pandey on December 24, 2011 at 10:53am

मजाक और हास्य की विधा के साथ परेशानी यही है कि कुछ विषयवस्तु किसी के लिये मजाहिया होती है परन्तु वही किन्हीं के लिये दुखती रग को कुरद जाने का कारण हो जाती है. ससुराल और संबंधित रिश्तों को इंगित कर कही गयी चर्चाएँ एक समय हास्य और मजाक का कारण बन जाया करती थीं, परन्तु, कथ्य और परिपाटियाँ समय के सापेक्ष हुआ करती हैं. 

 

Comment by Abhinav Arun on December 17, 2011 at 8:17pm

वाह राज जी इस रचना के विषय और प्रवाह ने मन मोह लिया हार्दिक बधाई !!

कृपया ध्यान दे...

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