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कलम को तलवार कर दिया,,,,,,,,,,
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सिखाकर आप ने उपकार कर दिया ।
लो हम पे एक और उधार कर दिया ॥१॥

अब उम्र भर न अदा कर पायेंगे हम,
इस कदर आपने कर्जदार कर दिया ॥२॥

ज़माना नीलाम कर देता आबरू मेरी,
वो आप हैं जो कि खबरदार कर दिया ॥३॥

गैरो ने सर उठाने का हौसला दे दिया,
अपनो ने तो हमे शर्मसार कर दिया ॥४॥

चाकू न खंज़र न मारा तेग ही उसनॆ,
नज़र के कटार से शिकार कर दिया ॥५॥

ये किसने याद किया है हमे इस कदर,
आज हिचकियों ने बेकरार कर दिया ॥६॥

खुद से ज्यादा भरोसा था जिस पे हमें,
नीलाम उसी ने सरे-बाज़ार कर दिया ॥।७॥

फ़क्त कतरे मे सिमटी थी ज़ात मेरी,
दुआ नॆ समंदर सा बिस्तार कर दिया ॥८॥

शब्द-सरिता नहीं साहित्य गंगा है ये,
जो डूबा उसका इसने उद्धार कर दिया ॥९॥

वक्त की आंधियों ने मारे थपेड़े "राज",
मेरी कलम को देखो तलवार कर दिया ॥१०॥

कवि-राजबुन्देली
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Comment

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 14, 2012 at 9:33pm

बहुत खूब आदरणीय राज बुन्देली जी, अच्छे अशआर प्रस्तुत किये है, खुबसूरत ग़ज़ल हेतु दाद कुबूल करे |

Comment by Abhinav Arun on January 13, 2012 at 8:59pm

वाह कवि जी हार्दिक बधाई इस ग़ज़ल हेतु -

ये किसने याद किया है हमे इस कदर,
आज हिचकियों ने बेकरार कर दिया ॥६॥
ये शेर बहुत पसंद आया !!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 13, 2012 at 8:21pm

ये किसने याद किया है हमे इस कदर,
आज हिचकियों ने बेकरार कर दिया ॥६॥

बहुत खूब राजबुन्देली साहब. बहुत खूब !

 

 

निवेदन :

चाकू न खंज़र न मारा तेग ही उसनॆ,
नज़र के कटार से शिकार कर दिया ॥५॥ ..   ..  नज़र की कटार ..

 

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on January 13, 2012 at 7:49pm

धन्यवाद,,,,,,,,,,,,,प्रभाकर भाई,,,,,,,,,,,,प्रणाम,,,,,,,,,,,,,,,,,


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 13, 2012 at 11:23am

सुन्दर अभिव्यक्ति , आदरणीय बुन्देली साहिब साधुवाद स्वीकारें. 

कृपया ध्यान दे...

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