आँखों में भरे खूँ लिए तलवार खड़ा है
करने को मुझे कत्ल मेरा यार खडा है
.
दे दे तु मुझे अपनी दुआओँ का सहारा
चोखट पे तेरी आज ये बीमार खडा है
.
जाने दे मुझे मौत की आगोश मे हमदम
क्योँ बनके मेरी राह मे दीवार खडा है
.
मरकर ही सही आज ये एजाज मिला तो
करने को मेरा आज वो दीदार खडा है
.
गर मुझको मिटाने का वो रखते हें इरादा
हसरत भी फना होने को तय्यार खडा है.
Comment
bahut bahut shuqriya sooraj ji
माशाल्लाह ! क्या खूब कहा है !
हाथोँ मे लिये खूँ भरी तलवार खडा है
करने को मुझे कत्ल मेरा यार खडा है॥
बहुत जानदार मतला है भाई जान !
सदैव स्वागत है मित्रवर
गर मुझको मिटाने का वो रखता हे इरादा
हसरत भी फना होने को तय्यार खडा है. ~~
गर मुझको मिटाने का वो रखते हैं इरादा
हसरत भी फना होने को तय्यार खडा है. !! khoob !!rahi !!
श्री अहमद जी, सादर. अति सुंदर ग़ज़ल. निम्न पंक्तियों के लिए खास बधाई :
जाने दे मुझे मौत की आगोश मे हमदम
क्योँ बनके मेरी राह मे दीवार खडा है.
अच्छे शेर कामयाब ग़ज़ल हसरत साहब दिली मुबारकबाद !!
गर मुझको मिटाने का वो रखता हे इरादा
इस मिसरे को यूं कर लें तो शेर और खूबसूरत हो जायेगा
गर मुझको मिटाने का वो रखते हैं इरादा
हसरत भी फना होने को तय्यार खडा है.
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किसी मतले के अतिरिक्त जब शेर के मिसरा उला के अंत में रदीफ की तुकांतता आ जाती है तो तकाबुले रदीफ का दोष पैदा होता है
आपके शेर में देखें
मर कर के मुझे आज ये एजाज मिला है
करने को मेरा आज वो दीदार खडा है
इस वजह से उला के अंत को बदलना पड़ेगा
इसके दो भाग है उस पर फिर कभी चर्चा की जायेगी
(बहुत जरूरी होने पर और किसी और तरीके से शेर के कथ्य के आधार पर खराब हो जाने की दशा में तकाबुले रदीफ में कुछ छूट भी दी गई है मगर उसका प्रयोग तभी करना चाहिए जब शेर में कोंई और तरीका ना बच रहा हो या किसी और तरीके से लिखने पर शेर में अर्थ का अनर्थ हो जा रहा हो ... )
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