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सदा आती है ये अक्सर तड़प के मेरे सीने से 

तेरे क़दमों में दे दूं जां जुदा रहकर के जीने से
                        मोहब्बत के मुसाफिर को कभी मंजिल नहीं मिलती
                        जिसे  साहिल  की हसरत  है  उतर जाए  सफीने  से    
मोहब्बत जो भी करते हैं बड़ी तकदीर वाले  हैं 
चमक जाती हैं तकदीरें  मोहब्बत के नगीने से 
                        तेरी यादों के  जुगनू  हैं तेरी खुशबू  हे साँसों  में
                        यही मोती मिले मुझको मोहब्बत के खजीने से 
किसी आशिक की तुर्बत पे ग़ज़ल मैंने पढी हसरत 
मुक़र्रर  की  सदा  आई  अचानक  उस  दफीने  से 

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Comment

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Comment by SHARIF AHMED QADRI "HASRAT" on April 4, 2012 at 2:42pm

hosla afzai ke liye bahut bahut shuqria ye misra obo par hi diya gaya tha lekin main us waqt obo ka membar nahin tha isliye maine ye ghazal baad mein kahi

Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on April 3, 2012 at 11:32pm

वाह साहब वाह .....

यही हसरत है काफिर की तमन्ना है यही वाइज,

जो काशी में कहे या हक सदा आये मदीने से...एक शेर आपके लिए सादर बधाई 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 3, 2012 at 9:48pm

सदा आती है ये अक्सर तड़प के मेरे सीने से 

तेरे क़दमों में दे दूं जां जुदा रहकर के जीने से
                        मोहब्बत के मुसाफिर को कभी मंजिल नहीं मिलती
                        जिसे  साहिल  की हसरत  है  उतर जाए  सफीने  से    
janab hasrat sahab. badhai. main bhi padh padh ke hi sikhunga, inayat hogi meri post valvale par bhi shudh karvayen. shukriya.
Comment by AVINASH S BAGDE on April 3, 2012 at 7:23pm

मोहब्बत के मुसाफिर को कभी मंजिल नहीं मिलती

                        जिसे  साहिल  की हसरत  है  उतर जाए  सफीने  से    ...bahut hi umda lajwab hai Hasrat bhai.
 तेरी यादों के  जुगनू  हैं तेरी खुशबू  हे साँसों  में
                        यही मोती मिले मुझको मोहब्बत के खजीने से .....kya shabd piro laye hai aap bhi is najuk se sher me....wah...Hasrat bhai...wah!

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