ग़ज़ल
मैं दर्दों का समंदर हूँ, ग़मों का आशियाना हूँ |
मैं जिंदा लाश हूँ , बीमार दिल , घायल फसाना हूँ ||
बदन पर ये हजारों ज़ख्म, तोहफे हैं ये अपनों के,
मैं जिनके प्यार का बीमार, आशिक हूँ , दिवाना हूँ ||
उन्हें नफरत सही मुझ से, मगर मैं इसलिए खुश हूँ,
कि- दुश्मन की तरह लेकिन मैं अपनों का निशाना हूँ ||
उन्हें है आज से कुछ प्यार ज्यादा और मुझे कल से,
वो हैं तस्वीर इस पल की तो मैं गुज़रा ज़माना हूँ ||
मुझे वो लूटकर खुश हैं, मुझे भी है ख़ुशी इसकी,
कि - मैं उस प्यार के काबिल की खुशियों का खजाना हूँ ||
रचनाकार- अभय दीपराज
Comment
उन्हें है आज से कुछ प्यार ज्यादा और मुझे कल से,
वो हैं तस्वीर इस पल की तो मैं गुज़रा ज़माना हूँ ||
बहुत खूब.. वाह..
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