तुम्हारे लिए
खुद हो के बेरंग, क्यों दुनिया के लिए रंग लाती हो ?
अपनी मंज़िल भूलकर, क्यों दूजे की राह सजाती हो ?
जो बीत गया वो फिर लौट के न आनेवाला
यकीन कर लो मेरा, क्यों अपनी जान जलाती हो ?
सच तुम कहती हो ये दुनिया बड़ी मतलबी है
मैने देखा तुमने देखा, क्यों बीती बात जगाती हो ?
मिलना - बिछड़ना है किस्मत की आँख- मिचोली
स्वीकार कर लो यही बेहतर, क्यों नैनो को रूलाती हो ?
सफ़र ख्वाब का कभी रुका नहीं, रोज नये रूप मे मिलता
सत्य यही जीवन का है, क्यों नयी सुबह ठुकराती हो ?
(कृति - बब्बन जी, २५ जून २०१३, सेवाग्राम )
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मौलिक एवं अप्रकाशित
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Comment
बहुत ही सुंदर व मर्मस्पर्शी रचना....................
मिलना - बिछड़ना है किस्मत की आँख- मिचोली
स्वीकार कर लो यही बेहतर, क्यों नैनो को रूलाती हो ?...बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ
सुंदर.....आपको बधाई !
बहुत बढ़िया आदरणीय-
बढ़िया प्रयास पर बधाई!!
आ0 बब्बन भाई जी, ’सफ़र ख्वाब का कभी रुका नहीं, रोज नये रूप मे मिलता
सत्य यही जीवन का है क्यों नयी सुबह ठुकराती हो?’.....बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति। बधाई स्वीकारें। सादर,
खुद हो के बेरंग, क्यों दुनिया के लिए रंग लाती हो ?
अपनी मंजिल भूलकर, क्यों दूजे की राह सजाती हो ?
आदरणीय बब्बन जी नमस्कार ,सीख भरी इस सुन्दर रचना के लिए आपको बधाई !
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