For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कुछ कह न सके तुम, चुप सह न सके हम .

खामोशियों में टूट गया दिल ये  बेचारा 
आहें दबी रहीं, चाहें दबी रहीं..
बिन तुम्हारे हमसे जिया ही न गया..
है ओढ़नी कफ़न, सूने से ये नयन..
जाते हुए पीछे से पुकारा ही न गया..
आया था एक ख़त, तुम हुए दिवंगत 
एक आस का सहारा था वो भी अब गया..
बाकी बचा था क्या? बाकी रहा भी क्या ?
माटी का ही लाल था माटी में मिल गया |

 

Views: 537

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Lata R.Ojha on September 15, 2011 at 10:47am

Shukria Ashish ji :)

Comment by Lata R.Ojha on September 15, 2011 at 10:47am

dhanyvaad Ganesh ji:)

Comment by Lata R.Ojha on September 15, 2011 at 10:46am

Shukria Anwesha Anjushree ji:)

Comment by Lata R.Ojha on September 15, 2011 at 10:46am

Aabhaar Kailash C Sharma ji:)

 

Comment by Lata R.Ojha on September 15, 2011 at 10:45am

Aapka bahut bahut dhanyvaad mohinichordia ji :)

Comment by आशीष यादव on September 15, 2011 at 9:40am

एक मार्मिक कविता| ह्रदय को स्पर्श करती हुई| इस दशा में दोनों को ही अपने कर्म करते हुए तड़पना पड़ता है, एक सीमा पर तो एक घर की सीमा में|


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 14, 2011 at 9:04pm

माटी का ही लाल था माटी में मिल गया....

 

वाह, लता जी, आपने इस रचना के जरिये देश के वीरों को सलाम भेजा है, एक सीमा पर शहीद होता है और एक घर में शहीद होती है, बिरह के दर्द को कलेजे में समेटे वो कैसे जय हिंद कहती होगी, वोह !

खुबसूरत प्रस्तुति लता जी, आभार आपको |

Comment by Anwesha Anjushree on September 14, 2011 at 6:58pm

sunder abhiwyakti..pidit man ka sunder avlokan...

Comment by Kailash C Sharma on September 14, 2011 at 3:19pm

है ओढ़नी कफ़न ..सूने से ये नयन..
जाते हुए पीछे से पुकारा ही न गया..
......बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति...रचना के भाव अंतस को गहराई तक छू जाते हैं.

Comment by mohinichordia on September 14, 2011 at 9:21am

मार्मिक कविता है |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service