ज़ेहन मे दीवार जो सबने उठा ली है,
रातें भी नही रोशन, शहर भी काली है |
मालिक ने अता की है, एक ज़िंदगी फूलों सी,
काँटों से बनी माला क्यूँ कंठ मे डाली है |
कैसी ये तरक्की है , कैसी ये खुशहाली है,
पैसे से जेब भारी, दिल प्यार से खाली है |
दर्द फ़क़त अपना ही दर्द सा लगता है,
औरों के दर्द-ओ-गम से आँख चुरा ली है |
किस-किस को सुनाएँगे अफ़साना-ए-हयात अब,
बेहतर है खामोशी, जो लब पे सज़ा ली है |
Zehan me deewaar jo sabne uttha lee hai.......
Raate.n bhi nahi roshan , sahar bhi kaali hai ......
MaaliQ ne ataa ki hai , ek zindagi phoolo.n si ........
Kaanto.n se bani mala kyun kanth me daali hai .......
Kaisi ye tarakki hai , kaisi ye khush_haali hai .......
Paise se jeb bhaari , dil pyaar se khaali hai ........
Dard faqat apna hi dard sa lagta hai ......
Auro.n ke dard - o - gham se aankh chura lee hai .......
Kis - kis ko sunayenge afsaana -e -hayat ab ......
Behtar hai khamoshi , jo lab pe saja lee hai ..............raavi :-)
Comment
///ज़ेहन मे दीवार जो सबने उठा ली है,
रातें भी नही रोशन, शहर भी काली है |///
बहुत खूब , खुबसूरत मतला, इस नफरत की दीवार को उठने से पहले ही गिरा देना चाहिए |
///मालिक ने अता की है, एक ज़िंदगी फूलों सी,
काँटों से बनी माला क्यूँ कंठ मे डाली है |///
क्या कहा जाय, कुछ संगदिल इंसान ना फूलों कि कोमलता को समझते है और ना ही उसके प्यार को , सुंदर शे'र,
///कैसी ये तरक्की है , कैसी ये खुशहाली है,
पैसे से जेब भारी, दिल प्यार से खाली है |///
शानदार ख्याल, पैसा ही आदमी को अंधा बनाये दे रहा है |
///दर्द फ़क़त अपना ही दर्द सा लगता है,
औरों के दर्द-ओ-गम से आँख चुरा ली है ///
सही कहा आपने, इंसान स्वार्थी होता जा रहा है , पुनः जोरदार कहन |
///किस-किस को सुनाएँगे अफ़साना-ए-हयात अब,
बेहतर है खामोशी, जो लब पे सज़ा ली है |///
खुबसूरत और बुलंद ख्याल |
बहुत बहुत बधाई इस खुबसूरत ग़ज़ल हेतु |
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