For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")


सुषमा ने तकिया समीर के सिरहाने कर दी थी।अपना सिर किनारे पर रखा था जो कभी ढुलक कर तकिये से उतर गया था।दोनों गहरी निद्रा में निमग्न थे।अचानक समीर ने करवट बदली।दोनों के नथुने टकराये।उसे आभास हुआ कि सुषमा का सिर तकिया पर नहीं, नीचे है।उसने आँखें खोली। उसे महसूस हुआ ,सुषमा दायीं करवट लेटी थी।उसकी उष्ण साँसें समीर को अच्छी लगीं।वह उसे तकिये पर लाने की कोशिश करने लगा।हालांकि वह चाहता था कि काम भी हो जाये और सुषमा की निद्रा भंग भी न हो।पर जैसे उसने उसे बाँहों में लेकर उसका सिर तकिया पर करना चाहा,वह जग गयी।अलसायी-सी बोली-
क्या करते हो?सोने दो न।’
तकिया पर आ जाओ।' समीर उसके मुख मंडल पर बिखरे उसके बाल सहेजते हुए बोला।
रहने भी दो।नींद आ रही है।' वह बायीं करवट हो गयी।समीर ने तबतक उसका सिर तकिया के ऊपर कर लिया था।
तकिया छोटा कैसे हो गया?'वह बड़बड़ायी, ‘तुमने इसे बदल दिया है,समीर।
नही रानी, बड़े वाले का खोल तुमने धोया था।अभी सूखा नहीं था।भूल गयी क्या?’
तुम्हें तो छोटावाला तकिया पसंद है न?इसीलिए उसे धो दिया था।’
तुम मेरी जान हो।’
रहने भी दो।जरा-सी बात पर पिनक जाते हो।अभी तकिये में हिस्सा दे रहे हो।’
पूरा ले लो न।' सुषमा की लटों से खेलते हुए समीर बोला।
बड़ी मिठास घोल रहे हो।क्या बात है?’
मिसरी में मिठास मैं घोलूँ?ऐसा हुआ है कभी क्या?’
मेरा तकिया क्यूँ नहीं दिया तुमने?’
अच्छा,लो।' समीर ने अपना बायाँ हाथ उसकी तरफ बढ़ा दिया।सुषमा ने उसपर अपना सिर रख लिया। समीर का हाथ कस गया।वह खिलखिलाई।
तुम बड़े वो हो।सोने नहीं देते।मुझे कमसिन समझकर तंग करते हो।’
मैं कौन ज्यादा बड़ा हूँ जी?’
पर तुम बहुत कुछ जानते हो।’
कुछ ज्यादा नहीं।’
अनाड़ी तो नहीं हो....पकठोसू।’
ऐसा कैसे कह सकती हो?’
महसूस किया है मैंने।ऊपर से भले भोलाराम दिखते हो, पर अंदर ही अंदर पकठाये हुए हो।जान निकालते रहते हो।’
इक्कीस का हूँ डियर।’
पता है।और मैं बस सोलह बसंती।यह भी कोई शादी की उमर होती है। जैसे बहती नदी में बाँध खड़ा कर दो,बस।’
पर ज्यादा बहने से नदी के भटकने का भय रहता है।इसीलिए बाँध खड़ा किया जाता है।’
क्यों न कहोगे? तैरने को नदी चाहिए।वह भी बाँध वाली।वाह जी वाह!
बाँधवाली नदी में बह जाने का भय नहीं होता न।’
मैं बहुत भोली थी ।इसीलिए तुम्हारी चल गयी, वरना..... ।’
वरना क्या?’
हाथ आती क्या उतनी जल्दी?फल खाने के लिए कितनी टोह लगानी पड़ती है। पता है, कि नहीं?’
वो तो सुना है।पर कहते हैं, कभी पेड़ से गुजरे और फल टपक कर हाथ में आ गया,कभी-कभी तो एक से अधिक भी।’
चलो हटो।फल के रसिया हो।इसीलिए कहती हूँ तुझको....पकठौसू। पूरे पकठाये हुए हो।' समीर की दाहिनी कलाई मरोड़ते हुए सुषमा बोली, ‘हमलोग अपने बच्चों की शादी इतनी कम उमर में न होने देंगे।
बच्चे होने तो दो।’
ऊँ हूँ...चलो हटो।’
मंद- मंद हवा …रौशनी गुलबादलों में छिपता-निकलता चाँद.... दबे- दबे खिलखिलाते बचे-खुचे तारे। तूफान की आहट से पर फड़फड़ाती, चिहुँकती चिड़ी....तेज-तेज साँस लेती हवा .... फिर चिड़ी की सिसकारी..... हवा शांत ....चाँद मुक्त,लज्जायुक्त, मुसकुराता हुआ ..... गर्वोन्नत चिड़ा चिड़ी को सहलाता हुआ ......चिड़ी गुमान भरी नजरों से अपने चिड़े को देख अलसाई हुई बोली,‘घाव देकर मलहम लगाते हो? ..... छलिये!!!

"मौलिक एवं अप्रकाशित"

 

Views: 256

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Manan Kumar singh on October 9, 2022 at 7:46pm

आदरणीय समर जी, शुक्रिया। नमन। 

Comment by Samar kabeer on October 9, 2022 at 6:34am

जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब, अच्छी लघुकथा हुई है, बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी, प्रस्तुत कविता बहुत ही मार्मिक और भावपूर्ण हुई है। एक वृद्ध की…"
56 minutes ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Oct 1

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service