‘बदलू नेता का चौदह वर्ष का एकमात्र बेटा ड्रग के ओवरडोज से मर गया। धंधेबाज गंगुआ की गिरफ्तारी हुई है।’ यह खबर शहर के गली-मुहल्ले में आग की तरह फैल गई।लोग कहने लगे, ‘यह बदलू तो पहले चवन्नी छाप पिछलग्गू नेता हुआ। इधर-उधर करके एक बार पार्षद भी बन गया था।इतना घपला-घोटाला किया-कराया कि इसका एक पैर हमेशा जेल में रहता।एक मामले में बाहर आता,दूसरे में गिरफ्तार हो जाता।बाद में इसने चरस-गाँजे का धंधा शुरू किया। जेल भी गया। जहाँ-तहाँ कुछ दे-लेकर छूटा।फिर दूसरों से कॉलेज-स्कूल में ड्रग की सप्लाई कराने लगा।गंगुआ को तो उसने कई बार जेल से छुड़वाया भी था।वह बदलू का असली गिरोहिया है। उसीके माध्यम से सारी ड्रग-सप्लाई होती है।’
जब बदलू को खबर मिली, तो वह सन्न रह गया। सोचने लगा, ‘गंगुआ तो बड़ा हरामी निकला।उसे हिदायत थी कि बंटी के स्कूल में नहीं जाना है। फिर भी गया। देखूँगा... स्साले हरामी को। फिर उसे याद आने लगे वे दिन,जब गंगू गाँजा-चरस के मामले उसके साथ ही पकड़ा गया था। सब कुछ उसके मत्थे मढ़-मढ़वाकर बदलू बाहर आ गया था। बाद में बड़ी मिहनत-मशक्कत औए रुपल्ले खरचकर उसे छुड़वाया भी था। हाँ, गंगू से लिखित वादा लिया था प्रशासन ने कि वह अब कभी ऐसा काम नहीं करेगा।यह दीगर बात है कि उसके बहुत कहने और एक तरह से धमकाने पर, कि वह गंगू की बीवी की पोल खोल देगा कि वह उसे छुड़वाने के लिए थानेदार, वकील के साथ कितनी बार सोई थी, तब जाकर रिपोर्ट- बदली हुई,वह बाहर आया; गंगू फिर तैयार हुआ था।’
बदलू यही सब सोच रहा था।आँखें बंद थीं। अजस्र धार बह रही थी।
‘हाथ आगे कीजिये।’ हवलदार फन्ने खाँ की कड़कदार आवाज से बदलू का ध्यान भंग हुआ।
‘एँ.... क्या हुआ? हथकड़ी क्यूँ? मेरा बेटा .....मरा।’
‘तुमने खुद मारा है उसे। गंगुआ ने अपने बयान में सबकुछ उगल दिया। अब सरकारी गवाह है।’
"मौलिक एवंअप्रकाशित"
Comment
आदरणीय समर जी, शुक्रिया। नमन।
जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब, अच्छी लघुकथा लिखी आपने, बधाई स्वीकार करें ।
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