मकर संक्रांति
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प्रकृति में परिवर्तन की शुरुआत
सूरज का दक्षिण से उत्तरायण गमन
होता जीवन में नव संचार
बाँट रहे तिल शक्कर मूंगफली वस्त्र
ढोल पर तक - धिन - तक - धिन थिरकते
युवा बुजुर्गों संग बाल
कर्णप्रिय लोकगीतों की मधुर सी धुन
दर के आगे आग जलाती माताएँ
कुदरत के सोये कण - कण को जगाने
सज आया मकर संक्रांति पर्व।
मौलिक एवं अप्रकाशित
सुरेश कुमार 'कल्याण'
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