शंका-दोहा अष्टक
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शंका दुख को जन्म दे, शंका मतकर व्यर्थ।
घर-बाहर इससे सदा, होता सकल अनर्थ।१।
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आसपास जब-जब बढ़े, शंकाओं के शूल।
असमय जाते सूख तब, सुख के सारे फूल।२।
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शंका नामक रोग से, तन-मन जल भंगार।
औषध पाया खोज कब, इस का ये संसार।३।
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लघुतम रहे विवाद को, शंका नित दे तूल।
संतों को असहज रहे, दुर्जन को अनुकूल।४।
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शंका उस मन जन्म ले, जिसमें रहता खोट।
सदा रक्तरंजित रहे, इससे पाकर चोट।५।
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शंका बैरी चैन की, नफरत का यह द्वार।
प्रीत भरे परिवार में, यह भरती अंगार।६।
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जो पड़ता इसके भँवर, रंक रहे या भूप।
दादुर जैसी गति करे, शंका अन्धा कूप।७।
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शंका को मत पोष मन, सुख को देगी मार।
कण्ठमाल सा मत पहन, झटपट इसे उतार।८।
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मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
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