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अगर झूठ को बोलिए, ठोक पीट सौ बार
सच से बढ़कर मानता, उसको भी संसार।१।
*
रहा झूठ से  कौन  है, वंचित कहो अबोध
भले न बोला हो गया, होकर कभी सबोध।२।
*
होता मुख पर झूठ के, नहीं तनिक भी नूर
जीवन पाता  अल्प  ही, पर  जीता भरपूर।३।
*
जीवन में बोला नहीं, कभी एक भी झूठ
हरा पेड़ तो  छोड़िए, मिला न कोई ठूँठ।४।
*
होता सच में जो नहीं, वही झूठ का काम
भले न बोला पर लिखा, धर्मराज के नाम।५।
*
भोला  देता  ताव  है,  करके  ऊँची  मूँछ
धूर्त चले रण में सदा, पकड़ झूठ की पूँछ।६।
*
कहो न भूले झूठ को, सधे भले ही स्वार्थ
सच को चाहे रोक दो, करने को परमार्थ।७।
*
कड़वा लगता सत्य है, जितना रस से बोल
लेकिन झूठ मिठास  ही, रखे स्वयं में घोल।८।
*
ऊँचा ध्वज ले नित चले, राजनीति में झूठ
हाँ-हाँ पर वह खुश रहे, ना पर जाता रूठ।९।
*
कभी न मीठे  झूठ  को, मन में देना गेह
अति मीठे से तन चढ़े, सदा रोग मधुमेह।१०।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 18, 2025 at 10:48pm

आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी उपस्थिति और प्रशंसा से लेखन सफल हुआ। स्नेह के लिए आभार।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 14, 2025 at 4:21pm

झूठ के विभिन्न आयामों को कथ्य में ढाल कर आपने एक सुंदर दोहावली प्रस्तुत की है, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. 

हार्दिक बधाइयाँ. 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 14, 2025 at 2:27pm

आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों की सराहना के लिए हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on February 10, 2025 at 12:08pm
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी झूठ पर आधारित सुन्दर दोहावली का सृजन हुआ है ।हार्दिक बधाई ।सर क्या दोहे में "ना" स्वीकार्य है?

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