For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लडखडाते हुए तुमने जिसे देखा होगा

लडखडाते हुए तुमने जिसे देखा होगा
वो किसी शाख से टूटा हुआ पत्ता होगा


अजनबी शहर में सब कुछ ख़ुशी से हार चले
कल इसी बात पे घर घर मेरा चर्चा होगा

गम नहीं अपनी तबाही का मुझे दोस्त मगर
उम्र भर वो भी मेरे प्यार को तरसा होगा

दामने जीस्त फिर भीगा हुआ सा आज लगे
फिर कोई सब्र का बादल कहीं बरसा होगा

कब्र में आ के सो गया हूँ इसलिए अय तपिश
उनकी गलियों में मरूँगा तो तमाशा होगा
मेरे काव्य संग्रह ---कनक--से -

Views: 375

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by jagdishtapish on August 10, 2010 at 10:39pm
माननीय आशा जी
हमें कतई उम्मीद न थी की आप उन पंक्तियों को पसंद करेंगी जो
हमने अपने जीवन में सच्चाई के धरातल पर खड़े रहकर
ना जाने किस भावना के वशीभूत होकर लिख दी
यकीं हो गया हमें बहुत पैनी नज़र है आपकी
इतनी गहरे तक पहुँचने के लिए हम उस ईश्वर
को धन्यवाद् देते हैं जिसने आपको कलमकार के
अंतर मन में झांक कर देखने की शक्ति दी हमारा
जीवन भर का अनुभव कहता है बहुत कम लोग
होते हैं ऐसे जिन्हें ईश्वर ऐसी प्रतिभा देता है
सच को सच कहने के लिए ह्रदय से आभारी हैं हम आपके ---
सादर
Comment by asha pandey ojha on August 10, 2010 at 7:03pm
waah tapish ji dil ko chho liya दामने जीस्त फिर भीगा हुआ सा आज लगे
फिर कोई सब्र का बादल कहीं बरसा होगा

कब्र में आ के सो गया हूँ इसलिए अय तपिश
उनकी गलियों में मरूँगा तो तमाशा होगा kamal kee panktiyan hain ye to badhai
Comment by jagdishtapish on August 10, 2010 at 3:01pm
manniya preetam ji -manoj ji --satis ji --aadarniya salil ji ganesh ji aap sabhi ne hamare vicharon ko saraha sadaiv isi tarah isneh banaye rakhen aabhar sweekaren
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on August 10, 2010 at 2:11pm
अजनबी शहर में सब कुछ ख़ुशी से हार चले
कल इसी बात पे घर घर मेरा चर्चा होगा

वाह भैया वाह....बहुत ही बढ़िया और सुंदर ग़ज़ल है.....जारी रखे...आशा नही पूरा यकीन है की आयेज भी निरंतर आपकी रचना पढ़ने को मिलती रहेगी....
Comment by satish mapatpuri on August 9, 2010 at 4:12pm
लडखडाते हुए तुमने जिसे देखा होगा
वो किसी शाख से टूटा हुआ पत्ता होगा
गम नहीं अपनी तबाही का मुझे दोस्त मगर
उम्र भर वो भी मेरे प्यार को तरसा होगा
बड़े ही खुबसूरत ख्याल है तपिश जी, आनंद आ गया.
Comment by sanjiv verma 'salil' on August 8, 2010 at 8:36pm
वाह... वाह... दिल तक पहुँचती हुई रचना.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 7, 2010 at 8:58pm
वाह बड़े भाई वाह क्या गज़ब का मतला निकाला है, जबरदस्त ,
लडखडाते हुए तुमने जिसे देखा होगा,
वो किसी शाख से टूटा हुआ पत्ता होगा,
बहुत सुंदर ग़ज़ल कहा है आपने बहुत खूब, बधाई स्वीकार करे भाई साहब ,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
6 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
13 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, इस प्रस्तुति को समय देने और प्रशंसा के लिए हार्दिक dhanyavaad| "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपने इस प्रस्तुति को वास्तव में आवश्यक समय दिया है. हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी आपकी प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद. वैसे आपका गीत भावों से समृद्ध है.…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्र को साकार करते सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"सार छंद +++++++++ धोखेबाज पड़ोसी अपना, राम राम तो कहता।           …"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"भारती का लाड़ला है वो भारत रखवाला है ! उत्तुंग हिमालय सा ऊँचा,  उड़ता ध्वज तिरंगा  वीर…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service