For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नन्हा सा पौधा चला, पेड़ से करने दोस्ती

देख-देख दुनिया हँसी, मन ही मन में कोसती |
नन्हा सा पौधा चला, पेड़ से करने दोस्ती ||

कैसा गड़बड़झाल ये, जाने कैसा खेल है,
लोटे औ जलधाम का, होता कोई मेल है |
आ जाएगा घूम के, सबकी खोपड़ सोचती,
नन्हा सा पौधा चला, पेड़ से करने दोस्ती ||

पौधा है नवजात ये, कोमल इसकी डाल है,
हट्टा-कट्टा पेड़ तो, मानो गगन विशाल है |
बुढ़िया काकी देख के, उँगली मुँह में खोंसती,
नन्हा सा पौधा चला, पेड़ से करने दोस्ती ||

पौधा सच्चा शेर था, चलता अपनी चाल से,
ना की उनकी जात में, जो डरते कंकाल से |
बंदरियों की खीस भी, उतरी खुद को नोंचती,
नन्हा सा पौधा चला, पेड़ से करने दोस्ती ||

पौधे ने जैसा कहा, ठीक वैसा काम किया,
वीर जान के पेड़ ने, भी सादर प्रणाम किया |
अंड-बंड बकता रहा, बगल में बैठा पोस्ती,
नन्हा सा पौधा चला, पेड़ से करने दोस्ती ||

(चित्र स्वयं के द्वारा बनाया हुआ)

Views: 1897

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on October 18, 2012 at 7:17am

आदरणीया रेखा जी.........सराहना के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद.........

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on October 18, 2012 at 7:16am

आदरणीय रक्ताले सर......आपका बहुत-बहुत धन्यवाद.........

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on October 18, 2012 at 7:16am

हार्दिक आभार आदरणीय अब्दुल लतीफ खान जी......

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on October 18, 2012 at 7:14am

आदरणीया राजेश जी....कविता के मूल भावों को पहचान के उनकी सराहना करने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद.........

Comment by Rekha Joshi on October 17, 2012 at 9:57am

पौधा सच्चा शेर था, चलता अपनी चाल से,
ना की उनकी जात में, जो डरते कंकाल से |
बंदरियों की खीस भी, उतरी खुद को नोंचती,
नन्हा सा पौधा चला, पेड़ से करने दोस्ती ||

 सुन्दर प्रस्तुति हार्दिक बधाई  गौरव जी

Comment by Ashok Kumar Raktale on October 17, 2012 at 9:21am

सुन्दर रचना गौरव जी बधाई स्वीकार करें.

Comment by लतीफ़ ख़ान on October 16, 2012 at 10:55pm

Aap ke dwara rachit chitra ewam kawya aap ke prakriti prem ko darsata hai...paryawaran ke prati aap ki jagrukta nisandeh prashanshneey hai...........kotishah badhs rahasaiyaan....ek doha .....jadi bootiyan nasht hueen,madhuras raha na yaad..char chiroungi tendu ke, bachche bhoole swaad


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 16, 2012 at 7:53pm

आत्मविश्वास का कोई कद नहीं होता आपकी कविता का सार है ये पौधे और पेड़ के बिम्ब के माध्यम से एक सार्थक गहरी बात समझाई है बहुत सुन्दर प्रस्तुति हार्दिक बधाई 

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on October 16, 2012 at 6:25pm

आदरणीया प्राची दीदी.......आपने कविता और चित्र दोनों को पसंद किया....जान के बहुत खुशी हुई.........आपका हार्दिक आभार........

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on October 16, 2012 at 6:25pm

आदरणीय लक्ष्मण सर.......उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार........

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, करवा चौथ के अवसर पर क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस बेहतरीन प्रस्तुति पर…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ **** खुश हुआ अंबर धरा से प्यार करके साथ करवाचौथ का त्यौहार करके।१। * चूड़ियाँ…See More
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी, प्रस्तुत कविता बहुत ही मार्मिक और भावपूर्ण हुई है। एक वृद्ध की…"
7 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service