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चाँद को भी हम कब तलक देखें

चाँद को भी हम कब तलक देखें
न देखें तुम्हे तो क्या फलक देखें

खुद चला आया जो आफताब आँखों में
फिर क्या किसी शम्मा की झलक देखें

आने का यकीं दे चले थे मुस्कुरा के वो
कुछ और हम ये तनहा सड़क देखें

वो न देखें मेरे ये लडखडाये से कदम
देखना है तो मेरी आँखों में चमक देखें

क्या देखते हैं आप यूं काफियों को घूर कर
मिल जाए जो जहां बस सबक देखें

-पुष्यमित्र उपाध्याय



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Comment by shalini kaushik on November 30, 2012 at 10:53pm

क्या देखते हैं आप यूं काफियों को घूर कर
मिल जाए जो जहां बस सबक देखें

 बहुत सुन्दर भावात्मक  प्रस्तुति


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 29, 2012 at 11:08am

//sahi kaha sir//

लेकिन आपकी पद्य-क्षमता को देखते हुए इस मंच को पूरा भरोसा है कि शीघ्र ही आपसे सुगढ ग़ज़लें सुनने को मिलेंगीं. .

Comment by Pushyamitra Upadhyay on November 29, 2012 at 9:35am

sahi kaha sir


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 28, 2012 at 8:01pm

क्या देखते हैं आप यूं काफियों को घूर कर
मिल जाए जो जहां बस सबक देखें

नहीं भाई नहीं, हम सिर्फ़ काफ़िये को एकदम नहीं देख रहे हैं. बहुत कुछ देख रहे हैं और नोट भी कर रहे हैं.

अवश्य ही सुधार की बहत गुँजाइश है.

Comment by Pushyamitra Upadhyay on November 27, 2012 at 8:44pm

सादर आभार वीनस भाई,
रविकर जी

Comment by रविकर on November 27, 2012 at 5:36pm

खुबसूरत रचना ।
सुन्दर भाव-प्रवाह ।।
आभार आदरणीय ।।

Comment by वीनस केसरी on November 27, 2012 at 5:33pm

वो न देखें मेरे ये लडखडाये से कदम
देखना है तो मेरी आँखों में चमक देखें

वाह भाई सही नसीहत दी है ....
बहुत खूब
शुभकामनाएं

कृपया ध्यान दे...

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