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राजा सत्यकेतु की नींद मे व्यवधान पड़ा तो वे जग गये.अंधेरे मे देखने की कोशिश की तो एक सजी धजी अपरिचित महिला को महल से बाहर जाते देखा. पूछने पर उसने बताया,"मै इस राज्य की भाग्यलक्ष्मी हूँ.मै इस राज्य को त्याग कर जा रही हूँ.
राजा ने कारण पूछा तो भाग्यलक्ष्मी ने उत्तर दिया,"जिस राजा के राज्य मे धन का सम्मान नही होता मै वहाँ नही रहती".राजा ने चूंकि उन दिनो गरीबों, अपाहिजों और असमर्थों के लाभार्थ अपने खजाने खोल रक्खे थे और भाग्य लक्ष्मी उसे अपव्यय और अपना अपमान समझती थी,अतः राजा के रोकने और मनाने पर भी वो नही मानी और चली गयी........
अगले ही दिन जब राजा को राज्य कार्य से थोड़ा अवकाश और एकांत मिला तो उन्हॉने एक और अपरचित सुदर्शन पुरुष को महल के बाहर जाते देखा. पूछ्ने पर उसने बताया कि वह इस राज्य का भाग्यदेवता है और चूंकि जिस राज्य से उसकी धन लक्ष्मी रूठ गयी हो वहाँ भाग्य देवता का भी निवास असंभव है. इसलिए वह भी वहाँ से जा रहा है.
राजा स्तब्ध थे, किन्तु ज़रूरतमंद गरीबों और असहायो के निमित्त अपनी सहायता रोक पाना उसकी अंतरात्मा को स्वीकार नही था.अतः भारी मन से राजा सत्यकेतु भाग्य देवता को अपनें महल से जाते देखते रहे.
अगले कुछ दिनो मे राजा ने महल से यश,सामर्थ्य,निश्चिंतता और आनंद आदि पुरुषो को जाते देखा.राजा कुछ भी न कर सके.
एक रात एक दुबले पतले कौपीन धारी वृद्ध व्यक्ति को भी राजा ने महल से जाते हुए देखा.राजा ने उससे भी उसका परिचय पूंछा.उसने उत्तर दिया , वह सत्य है और अपने साथियों के बिना वह भी वहाँ नही रह सकता.
राजा ने उसके पैर पकड़ लिए,"सत्य यदि उसके जीवन से चला गया तो वह जी कर क्या करेंगे?"
अत्यंत अनुनय विनय के बाद आखिर सत्य को पसीजना पड़ा और वह राजा के साथ रहने को मान गया . अगले ही क्षण लक्ष्मी ,भाग्य यश, सामर्थ्य और आनंद आदि सभी विभूतियाँ राजा के महल मे पुनः आ गयी.
क्योकि जहाँ सत्य है इन सारी विभूतियों का स्थान भी वही है. फिर एक लंबे समय तक राजा सत्यकेतु अपनी सभी विभूतियों के साथ न्यायपूर्वक् प्रजापालन करते रहे.....
डा.बृजेश कुमार त्रिपाठी

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Comment by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on November 21, 2010 at 11:26am
गणेश भैया कहानी पसंद करने के लिए पसंद बहुत बहुत धन्यवाद्

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 21, 2010 at 10:37am
बहुत ही सुंदर प्रेरक प्रसंग , जहा सत्य है वहा सबकुछ है | बहुत बढ़िया |

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