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हर कदम खुशियाँ मिले, सबकी कवायद जिस लिए है

राम जाने दर्द क्यों, हर दिल में आखिर किसलिए है

 

भीड़ को तो आपका ही, इक इशारा चाहिए  बस

पीछे-पीछे चल रहा  जो, हाथ में माचिस लिए है

 

लोग मुझसे कह रहे थे, आदमी, इंसान है यह

गौर से देखा, तो जाना, दिल-जिगर बेहिस लिए है

 

मैं लडूंगा जब यहाँ, हर काम उसका भी बनेगा

साथ मेरा दे रहा, यह शख्स अबतक इसलिए है

 

पीठ पीछे, जो यहाँ, मेरी शिकायत कर रहा था

सामने आया तो देखा, हाथ में नर्गिस  लिए है 

 

आज जिससे भी मिलाया,कल उसी से दूर हैं हम   

जिंदगी से कुछ शिकायत, लग रहा बस इसलिए है

                             बेहिस = भावना विहीन         

डॉ ललित

मौलिक और अप्रकाशित

 

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Comment by Ketan Parmar on June 30, 2013 at 1:58pm
Sunder sirji
Comment by विजय मिश्र on June 29, 2013 at 5:00pm
जमीनी सच का सही मायने में मुआएना कराती है आपकी ये तल्ख़ गज़ल . बधाई लें भाई ललितजी .
Comment by Shyam Narain Verma on June 29, 2013 at 4:34pm

बहुत ही सुंदर व मर्मस्पर्शी रचना.......................

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 29, 2013 at 2:01am
""आज जिससे भी मिलाया,कलउसी सेदूरहैं हम

जिंदगी सेकुछशिकायत, लगरहा बसइसलिए है""...बहुत ही उम्दा गजल की पेशकश आदरणीय..डा.ललित सिंह जी, दाद कुबूल कीजीऐ
Comment by coontee mukerji on June 28, 2013 at 7:11pm

मैं लडूंगा जब यहाँ, हर काम उसका भी बनेगा

साथ मेरा दे रहा, यह शख्स अबतक इसलिए है

 

पीठ पीछे, जो यहाँ, मेरी शिकायत कर रहा था

सामने आया तो देखा, हाथ में नर्गिस  लिए है ...........मतलबी लोग पग पग पर मिल जाऐंगे.सुंदर प्रस्तुति.

सादर

कुंती

Comment by Sumit Naithani on June 28, 2013 at 3:48pm

पीठ पीछे, जो यहाँ, मेरी शिकायत कर रहा था

सामने आया तो देखा, हाथ में नर्गिस  लिए है ...शानदार

Comment by Madan Mohan saxena on June 28, 2013 at 11:53am

बहुत शानदार ग़ज़ल शानदार भावसंयोजन हर शेर बढ़िया है आपको बहुत बधाई

कृपया ध्यान दे...

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