For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हल्द्वानी में आयोजित ओ बी ओ ’विचार गोष्ठी’ में प्रदत्त शीर्षक पर सदस्यों के विचार : अंक ४

अंक ३ पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें …

आदरणीय साहित्यप्रेमी सुधीजनों,
सादर वंदे !

ओपन बुक्स ऑनलाइन यानि ओबीओ के साहित्य-सेवा जीवन के सफलतापूर्वक तीन वर्ष पूर्ण कर लेने के उपलक्ष्य में उत्तराखण्ड के हल्द्वानी स्थित एमआइईटी-कुमाऊँ के परिसर में दिनांक 15 जून 2013 को ओबीओ प्रबन्धन समिति द्वारा "ओ बी ओ विचार-गोष्ठी एवं कवि-सम्मेलन सह मुशायरा" का सफल आयोजन आदरणीय प्रधान संपादक श्री योगराज प्रभाकर जी की अध्यक्षता में सफलता पूर्वक संपन्न हुआ |

"ओ बी ओ विचार गोष्ठी" में सुश्री महिमाश्री जी, श्री अरुण निगम जी, श्रीमति गीतिका वेदिका जी,डॉ० नूतन डिमरी गैरोला जी, श्रीमति राजेश कुमारी जी, डॉ० प्राची सिंह जी, श्री रूप चन्द्र शास्त्री जी, श्री गणेश जी बागी जी , श्री योगराज प्रभाकर जी, श्री सुभाष वर्मा जी, आदि 10 वक्ताओं ने प्रदत्त शीर्षक’साहित्य में अंतर्जाल का योगदान’ पर अपने विचार व विषय के अनुरूप अपने अनुभव सभा में प्रस्तुत किये थे. तो आइये प्रत्येक सप्ताह जानते हैं एक-एक कर उन सभी सदस्यों के संक्षिप्त परिचय के साथ उनके विचार उन्हीं के शब्दों में...


इसी क्रम में आज प्रस्तुत हैं श्रीमती डॉ नूतन गैरोला जी का संक्षिप्त परिचय एवं उनके विचार.....

संक्षिप्त परिचय 

डॉक्टर (स्त्री रोग विशेषज्ञ ) 
संवेदनशील व्यक्तित्व, समाजसेवी, कवि हृदया, सुगृहिणी 
जन्मस्थान - देहरादून उत्तराखंड. 
जन्मदिन – १० जुलाई  

पिता - श्री ताराचंद्र डिमरी, माता - श्रीमती रमा डिमरी, 
पिता के साथ देहरादून, जगदलपुर (अब छत्तीसगढ़ ), गोपेश्वर (उत्तराखंड) कानपुर, लखनऊ, कलकत्ता अध्यन के लिए रही. अतः जहाँ देवभूमि की नैसर्गिक सुंदरता और पवित्र वातावरण और परम्पराओं से प्रभावित रही, वहीँ मध्यप्रदेश में बस्तर जिले में आदिवासियों के जीवन को भी बहुत नजदीक से देखा, परखा समझा, संगीत की तीन साल साधना भी की, नृत्य से भी विशेष लगाव रहा. बचपन में एथलीट भी थी और कानपुर और गढ़वाल विश्वविद्यालय में अपने कॉलेज की बेडमिन्टन और टेबल टेनिस की केप्टिन भी रही और स्पोर्ट्स के साथ लेखन में कई प्रतिस्पर्धाएं जीती. स्त्रीरोग विशेषज्ञ होने की वजह से महिलाओं की सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और शारीरिक पीडाओं को नजदीक से देखा और दिल से महसूस किया. बचपन से ही बहुत संवेदनशील थीं, अतः जहाँ कहीं समाज में दुख-सुख देखा, उसमें खुद को डूबा पाया और पढ़ाई के साथ लेखनी सतत चलती रही. तेरह वर्ष की उम्र से कवितायें और कहानी लिखना शुरू कर दिया था. फिर समाज से सरोकार रखने वाले ज्वलंत मुद्दों पर आपकी लेखनी चलने लगी. और हर संभव समाज में मदद के लिए तत्पर भी रही जिसके लिए वो अपने पति के साथ मिल कर हर महीने में एक या दो बार सुदूर सीमांती पहाड़ी गाँवों में व देहरादून के बाहरी हिस्सों में जरूरतमंदों को निशुल्क चिकित्सीय सेवा उपलब्ध कराती रही हैं. उत्तराखंड में सामाजिक संस्था “धाद” से जुड़ कर सामाजिक विषयों पर कार्य भी करती हैं. सामाजिक क्षेत्र में लेखन के लिए साहित्य शारदा मंच ने उन्हें "सहित्यश्री" की उपाधि से नवाजा. विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, कहानियाँ और कवितायें प्रकाशित होती रहती हैं. खुद के संकलन के लिए कभी विचार नहीं किया था अस्तु सामूहिक संकलन “खामोश ख़ामोशी और हम” में काव्यसंकलन. दो पुस्तकें प्रकाशनाधीन.  
रचनाएँ नव्या, शब्ददूत, मिताली, मध्यरेलवे की सालाना पुस्तक 'स्वयंसिद्धा', खामोश ख़ामोशी और हम, त्रिसुगंधी इत्यादी पत्रिकाओं और कई वेब साइटस और ई-पुस्तिकाओं मे रचनाएं प्रकाशित. सामाजिक संस्था धाद के साहत्यिक एकांश से जुड कर हिन्दी कवि गोष्ठियाँ और कवि सम्मलेन का आयोजन करवाती हैं. 
रुचियाँ - फोटोग्राफी, निशानेबाजी आदि. 

डॉ० नूतन डिमरी गैरोला जी का उद्बोधन 

आप सभी का सादर अभिवादन और देवभूमि में स्वागत है| मैं आज यहाँ पर खुद को बहुत गौरवान्वित महसूस कर रही हूँ कि मैं साहित्य के क्षेत्र में  इतने अच्छे नामी  लोगों से रूबरू हो रही हूँ और अपने विचार यहाँ प्रस्तुत कर रही हूँ .. देश के विभिन्न हिस्सों से आप सभी आये हैंतो आपस में जो हमारी पहचान हुई वो कम्प्यूटर में अंतरजाल के माध्यम से हुई थी, लेकिन यहाँ पर जो हम कमप्यूटर से बाहर लाइव, आपस में जीवंत मिल रहे हैं और हम जो गोष्ठी कर रहे हैं, और करेंगे,  साहित्य से सम्बंधित अपनी रचनाओं पर ... वो और किसी की नहीं अंतरजाल की देन है और ओबीओ उसका एक बहुत बेहतरीन मंच रहा है.....

लेकिन आज के मुद्दे, अंतरजाल और  साहित्य के बारे में बात करते हुए सबसे पहले तो इस विषय पर कुछ नेगेटिव प्वाइन्ट भी गिनवाउंगी.

इस विषय पर बात करते हुए मैं यह कहना चाहूंगी कि आज अंतर्जाल में साहित्य का तरल आधुनिकीकरण अर्थात liquid modernization  हो रहा है, .. तरल रूप में जैसे पानी बहता है अस्थिर, चलायमान, जिसका कोई अपना आकार नहीं न कोई दिशा जहां सरलता से ढलान मिले बह चले और अपने साथ अच्छा भी तो कीचड़ और गन्दगी भी ले कर बढता है ... वैसे ही अंतरजाल में जो चाहे साहित्य के नाम से प्रवेश कर जाता है, कुछ लोग जो बिना जाने , बिना अध्यन किये, बिना पढ़े बिना विचार के जिन्हें साहित्य से कोई लगाव नहीं, उनका दिशाविहीन अस्तरीय लेखन, साहित्य के नाम पर परोस दिया जाता है या वाह वाही  करने वालों की भी कमी नहीं अंतरजाल में  .......

दूसरे, पुस्तकों की अपनी बहुत चिर स्थायी महत्ता है क्योंकि जो बुक है पुराने जो रचनाकार है, उनकी लिखी पुस्तकें, हमारे गुरूजनों नें भी उन्हें पढ़ा है, हमारी माँ पिताजी नें भी पढ़ा है, और हमने भी पढ़ा लेकिन अंतरजाल में जो साहित्य है वो ज्यादा दिनों तक ज्यादा समय तक प्रभावकारी नहीं रहता है भुला दिया जाता है| और जो मेरी आँखों ने पढ़ा अंतरजाल मे, मैं कुछ वर्षों के बाद अपने बच्चों को न बता पाऊं कि अंतर्जाल के किस पेज में कहा पर यह तथ्य था........

साहित्य जो अंतरजाल में आ रहा है..मैं सोचती हूँ यहाँ पर एक ऐसी ..कोई ऐसी पॉवर होनी चाहिये जो इनको छान सके, कट ऑफ कर सके, क्यूंकि यहाँ अंतरजाल से हमारे समाज को अश्लील साहित्य भी दिया जा रहा है.. तो ये जो अश्लील साहित्य है और जो ये निम्नस्तरीय साहित्य हैं, साहित्य नहीं कहती मैं उसको..... जो हमारी आने वाली पीढ़ी है, उसको भ्रमित कर रहा है, गलत रास्ता देगा, समाज को असुरक्षित बनाएगा..... ऐसे अश्लील लेखन को हर हाल में रोकना पड़ेगा|

जब मैं कुछ नेगेटिव प्वाइंट्स गिना रही हूँ .. तो कहूँगी .. अंतरजाल में हम लोग देखते हैं जो हमारा लिखा है अगर उसको हम सेव प्रोपर्ली नहीं करते हैं तो हमारा ..मैं एक रचनाकार के तौर पर कह रही हूँ, तो हमारी रचना डिलीट हो सकती है, साईट पर वाइरस के अटेक का डर .......... अंतरजाल में जब हम रचना पढते हैं तो उसका असली रचनाकार कौन है, यह जानना भी जरूरी होता है, अंतरजाल मे साहित्य की चोरी होना भी आम डर है  ...

और एक चीज़ और है , मैं तो डॉक्टर हूँ इसलिए कुछ मैं ये भी देखती हूँ कि साहित्यकार और कम्प्यूटर और साहित्य तीनों चीज़ें आपस में जुड़ी हैं ..अगर हम बहुत लंबे समय तक हम अंतरजाल पर बैठ कर काम करते हैं तो स्वास्थ पर कुप्रभाव पड़ता है, जैसे आँखों का कमजोर हो जाना, ड्राई आई, स्पोंडीलाइटिस, कमर दर्द, कार्पल टनल सिन्डरोम, मोटापा, सिर भारी, दर्द  जैसी तकलीफें जन्म लेती है| सो लगातार कम्प्युटर के आगे न बैठे .........................................

लेकिन निगेटिव पहलु के  अलावा साहित्य में अंतरजाल का बहुत बड़ा योगदान है और सकारात्मक पहलु कम नहीं है ..... क्योंकि अंतरजाल, साहित्य को  त्वरित  वैश्विक मंच देता है .. एक बार साहित्य अंतरजाल में आया कि मिनटों मे पूरे विश्व के कोने कोने मे पढ़ा जा सकता है ... अतः यह विश्व के फलक पर भी साहित्यकार को पहचान देता है .. आप अच्छा लिखते है तो  

कम से कम समय में बहुत अच्छी पहचान मिल सकती है, ये अंतरजाल की बहुत बड़ी खूबी है, और एक बार पहचान मिलती है तो ज़रूर है कि जब वो पुस्तक प्रकाशित करता है तो उसकी पुस्तक की बिक्री के लिए खरीदार भी मिल सकते हैं .... नहीं तो पुस्तकें धूल भी खाती हैं और उसे बाजार नहीं मिलता ....... और हं कागज की भी बचत है यहाँ पहले भीति चित्र और पत्थरों पर लिखा जाता था ताम्र पत्र भोज पत्र और फिर कागज़ ... अंतरजाल पर अब कागजों की बचत कर  .. अच्छी से अच्छी किताबे इ बुक्स और साइट्स दी हैं  और और कोई कागज़ का अतिरिक्त बोझा नहीं|

 यहाँ अच्छा से अच्छा साहित्य भी मिलता है जैसे ई बुक में या ब्लोग्स में जैसे कविता कोष, अनुभूति आदी  .... और अच्छे साहित्यकारों भी इसके महत्व को नकार नहीं पा रहे उनकी आवाजाही भी है .......

यहाँ पर बहुत स्तरीय लेखन आज कल देख रहे हैं पर कभी कभी राईटर्स जो अपने को सोचते हैं कि हम तो बहुत परिपक्व साहित्यकार हैं, और मार्गदर्शन करने की बजाय, वे अपने को बरगद  समझ कर अन्यों को खरपतवार का दर्जा देते हैं और हतोत्साहित करते है उनसे घबरा कर लेखन न छोड़े याद रखें आप एक नन्हा बीज है और जो एक छोटा बीज है कल वो भी बरगद बनेगा, ये उनको भूलना नहीं चाहिये...और यहाँ पर ओबीओ एक ऐसा माध्यम है जो कि झूटी तारीफों की बजाय हमें सही मार्गदर्शन देता है और एक नए रचनाकार को असल मायने में साहित्यकार बनाता है.. हमारी विधाओं को जिनको हम भूल चुके हैं, कई नयी कविताओं का सृजन हो रहा है लेकिन ओबीओ पुरानी  विधाओं पे भी काम करता है |

और हमारी भी एक रचनाकार के रूप में कई जिम्मेदारीयां है ..अनाप शनाप जो जो दिल मे आया लिख्रने की बजाय उद्देश्यपूर्ण लिखें .क्योंकि जो कलम है एक ताकत है एक बम है  ..अंतरजाल पे जो हम लिखते हैं वो एक प्रामाण होता है समाज का और समाज को दिशा देता है ...  जो हम लिख रहे हैं वो बहुत प्रभावकारी रूप में जा रहा है.. तो हमें समाज के लिए उसके कल्याण के लिए अच्छे साहित्य को रचना है ,  अच्छे से अच्छा साहित्य पढ़ना चाहिये हम एक अच्छे पाठक भी हों उससे हमारी सोच, हमारे विचारों को एक विस्तार मिलेगा .. और जब हम भावनाओं को कलम से गढते है तो उसमें एक जान आ जाती है, वो प्रभावकारी होते हैं  और हम अपनी भावनाओं को संप्रेषित कर सकते हैं

तो मैं इसी के साथ ओबीओ को धन्यवाद देती हूँ जिन्होंने हमें इतना अच्छा मंच दिया, मुझे नहीं लगता कि अंतरजाल पर कोई और हमें ऐसा मार्गदर्शन देता है.. साहित्य को पढ़ने का लिखने का

धन्यवाद

अगले सप्ताह अंक ५ में जानते हैं ओ बी ओ सदस्या श्रीमती राजेश कुमारी जी का संक्षिप्त परिचय एवं उनके विचार.....

Views: 1070

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by MAHIMA SHREE on August 27, 2013 at 11:57pm

आदरणीया नूतन जी .. आपके व्यक्तिव के अन्य पहलुओ के बारे में जानकार बहुत अच्छा लगा .. विचार गोष्ठी में प्रदत विषय पर भी पुन: विस्तारपूर्वक पढ़ कर सुखद लगा .... आपके व्यक्तिव में जो सरलता और विनम्रता है .. वो हमेशा कायम रहे ..यही शुभकामना है .. सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 26, 2013 at 1:25pm

आदरणीया नूतनजी, जैसा कि प्रस्तुत शृंखला का प्रश्न है, इसकी समग्रता में बहुत कुछ सम्मिलित है या होना है. इसकी पूरी जानकारी तो ऐडमिन ही दे सकते हैं. अलबत्ता, कई-कई कारणॊं और समयाभाव से मैं या मेरे साथ के सदस्य अपने विचारों को प्रस्तुत नहीं कर पाये. 

वस्तुतः हम संप्रेषण के लिए भले भाषा का प्रयोग करें लेकिन विचारों का संप्रेषण मात्र शाब्दिक नहीं होता, बल्कि शाब्दिक भी होता है. अतः, हम अपने विचारों के साथ ही वहाँ हलद्वानी में थे.

सादर

Comment by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on August 19, 2013 at 4:18pm

परम आदरणीय सौरभ जी! उस दिन रोड ब्लोक न होती तो हम आपके भी इस विष्य पर विचार सुन कर अभिभूत होते  ... ओ बी ओ के मंच ने हम पर विश्वास किया और इस योग्य समझा ... इसके लिए मैं ओ बी ओ की तहे दिल शुक्रगुजार हूँ ... सौरभ जी ! आपके शब्द मेरे लिए बहुत मायने रखते है..  आपका पुनः पुनः धन्यवाद ... शुभं 

Comment by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on August 19, 2013 at 4:08pm

आदरणीय गीतिका जी .. आपको सुनना और समझना भी बहुत अच्छा लगा .. एक चुलबुली पर काफी संवेदनशील लड़की... सच मे याद फिर ताज़ी हो आई... शुभकामनाएं तुम्हें 

Comment by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on August 19, 2013 at 4:06pm

आदरणीय केवल प्रसाद जी .. जो हमसे बन् पड़ा है, अपने इर्द गिर्द समाज मे वह हमने किया ... बहुत त्रुटियाँ भी होंगी .. किन्तु देशप्रेम सच मे कूट कूट कर भरा है... और आपने इसे पहचाना ... हमें खुशी हुई... हम देश के अच्छे नागरिक बन् सकें .. इसी उम्मीद की ज्योति के साथ आपको ह्रदय से आभार 

Comment by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on August 19, 2013 at 4:03pm

आदरणीय अनुपमा जी.. आपका तहे दिल शुक्रिया ...

Comment by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on August 19, 2013 at 4:02pm

आदरणीय अभिनव  जी .. आपका सादर धन्यवाद ... आप का भी उस दिन सद्य स्फूर्त संचालन जो कि कार्यक्रम के बदलने की वजह से आपको करना पड़ा .. बेहतरीन मंच संचालन से अभिभूत हुए थे .. हमारे विचारों को सुनने और समझने के लिए पुनः धन्यवाद ..

Comment by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on August 19, 2013 at 3:54pm

आदरणीय अरुण शर्मा अनंत जी.. आपका सादर धन्यवाद .. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 19, 2013 at 10:12am

यह शृंखला मुझ जैसे सहभागियों के लिए कितने महत्त्व की है यह बताने की आवश्यकता नहीं.

किसी विषय पर इम्प्रोम्प्टू बोलना उद्बोधित तथ्यों पर ऐसे विन्दुओं की अपेक्षा करता है जो सफल प्रस्तुतीकरण पर वक्ता के अनुभव तथा अध्ययन की विशिष्टता को सामने लायें.

जब कई-कई अपरिहार्य कारणों से आयोजन के पहले चरण की रूप-रेखा को बदलना पड़ा था तो सारी प्रक्रिया ही नई हो कर सामने आयी थी और प्रक्रिया का सफलता पूर्वक निर्वहन हुआ था. इसमें महती योगदान उन वक्ताओं का था जिन्होंने तयशुदा वक्ताओं के मौज़ूद न हो पाने के कारण अपने विचारों से श्रोताओं को लाभान्वित किया था. डॉ. नूतन गैरोला इन्हीं वक्ताओं में से थीं.

आपके इम्प्रोम्प्टू विचारों के प्रति मेरा सादर अनुमोदन.

शुभ-शुभ

Comment by वेदिका on August 19, 2013 at 1:39am

दुबारा ताज़ी हो उठी यादों को  याद करके फिर से उन क्षणों को हमने जी लिया,
आदरणीया नूतन जी!
एक सम्वेदनशील रचनाकार के रूप में आपने उद्बोधन में नकारात्मक और सकारात्मक आदि सभी पक्ष समाहित किये थे, वास्तव में लाभ पक्ष मात्र को देखने से ही कोई तथ्य पूर्ण नही होता, उसका दूसरा पह्लू भी आवश्यक होता है। आपने सशक्त विचार प्रस्तुत किये। उनको पुन: पढ़ के बहुत अच्छा लगा।   आपकी इन्सानियत के प्रति उदारता देख के नत हूँ
बधाई एवं शुभकामनायें !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
Tuesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service