For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ऋतु गर्मी की आई

ऋतु गर्मी की आई

छन्न पकैया छन्न पकैया, ऋतु गर्मी की आई|

आँधी धूल उडाते चलती, बहे गर्म लू भाई|१|

छन्न पकैया छन्न पकैया, नीम सिरिष हैं फूले |

हवा सुगंध बिखेरे उनकी, खुशबू से मन झूले|२|

छन्न पकैया छन्न पकैया,जुगनू चमचम चमके|

सूखी नदियाँ रेत तलैया, पानी जैसे झलके|३|

छन्न पकैया छन्न पकैया, आँखें धूप में चौंधे|

लाल पुष्प से पुष्पित सज्जित, गुलमोहर के पौधे|४|

छन्न पकैया छन्न पकैया, खायें मठ्ठा रोटी|

गर्मी के दिन लम्बे होते, रातें होती छोटी|५|

छन्न पकैया छन्न पकैया, चलते कूलर पंखे|

 बिजली की जब हुई कटौती, अब काहे को झंखे|६|

छन्न पकैया छन्न पकैया, ककड़ी खीरे भायें|

लीची बेल फालसा खायें, गर्मी दूर भगायें|७|

छन्न पकैया छन्न पकैया, गर्मी के दिन आये|

शरबत लस्सी कुल्फी ठंडा, सबका मन ललचाये|८|

छन्न पकैया छन्न पकैया,गर्मी लगे उबाऊ|

जगह जगह पर दिखते है अब, शीतल जल के प्याऊ|९|

छन्न पकैया छन्न पकैया,गर्मी खुशियाँ लाती|

बंद हो गए विद्यालय अब, नहीं पढ़ाई भाती|१०| 

छन्न पकैया छन्न पकैया, रटा रटाया जुमला|

गर्मी खूब सताए अब तो, चलो मनाली शिमला|११|

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 824

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Satyanarayan Singh on May 22, 2014 at 10:05pm

उत्साहवर्धन एवं बधाई हेतु सादर आभार आदरणीय विजय निकोरे जी 

Comment by vijay nikore on May 21, 2014 at 3:30pm

बहुत ही सुन्दर रचना है। बधाई, आदरणीय।

 

Comment by Satyanarayan Singh on May 20, 2014 at 11:16pm

सादर आभार आदरणीय 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 20, 2014 at 11:03pm

बढिया संशोधन हुआ है आदरणीय

सादर

Comment by Satyanarayan Singh on May 20, 2014 at 8:23pm

परम आ. सौरभ जी सादर 

    प्रस्तुति पर आपकी उपस्थिति से रचना कृत कृत्य हुई. इस विधा में यह मेरा प्रथम प्रयास है और इस प्रयास को आपके अनुमोदन से यह प्रयास सफल रहा ऐसा मेरा मानना है. 

    नीम और सिरिस के सन्दर्भ में स्त्रीलिंग क्रिया के बारे में आपने आगाह किया अतएव आपका आभारी हूँ.  दिखने में  छोटी किन्तु व्याकरण के दृष्टी से बड़ी चूक है आदरणीय इन सबकी अब जानकारी होने लगी है. इस बात को ध्यान में रखकर मूल रचना में निम्न संशोधन कर रहा हूँ. 

छन्न पकैया छन्न पकैया, नीम सिरिस हैं फूले|

हवा सुगंध बिखेरे उनकी, खुशबू से मन झूले||

यदि संशोधन उचित न हो तो कृपया अवगत कीजियेगा. बधाई एवं उत्साहवर्धन हेतु सादर धन्यवाद आदरणीय 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 20, 2014 at 3:25am

छन्न पकैया तो बस छन्न पकैया है .. .बहुत-बहुत बधाई. नीम सिरीष को मिली स्त्रीलिंग क्रिया के अलावे अच्छा प्रयास हुआ है, आदरणीय सत्यनारायण जी.

Comment by Satyanarayan Singh on May 12, 2014 at 9:22pm

रचना पर आपकी प्रतिक्रिया एवं बधाई हेतु आपका ह्रदय से आभार आदरणीय जितेन्द्र  जी

Comment by Satyanarayan Singh on May 12, 2014 at 9:22pm

सादर आभार आदरणीय जवाहर लाल जी 

Comment by Satyanarayan Singh on May 12, 2014 at 9:21pm

रचना पर आपकी प्रतिक्रिया एवं बधाई हेतु आपका ह्रदय से आभार आदरणीय अरुण निगम  जी

Comment by Satyanarayan Singh on May 12, 2014 at 9:21pm

रचना पर आपकी प्रतिक्रिया एवं बधाई हेतु आपका ह्रदय से आभार आदरणीय लडिवाला जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post भादों की बारिश
"यह लघु कविता नहींहै। हाँ, क्षणिका हो सकती थी, जो नहीं हो पाई !"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

भादों की बारिश

भादों की बारिश(लघु कविता)***************लाँघ कर पर्वतमालाएं पार करसागर की सर्पीली लहरेंमैदानों में…See More
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान ।मुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।। छोटी-छोटी बात पर, होने लगे…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय चेतन प्रकाश भाई ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक …"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सुशील भाई  गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिए आपका आभार "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"विगत दो माह से डबलिन में हूं जहां समय साढ़े चार घंटा पीछे है। अन्यत्र व्यस्तताओं के कारण अभी अभी…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"प्रयास  अच्छा रहा, और बेहतर हो सकता था, ऐसा आदरणीय श्री तिलक  राज कपूर साहब  बता ही…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छा  प्रयास रहा आप का किन्तु कपूर साहब के विस्तृत इस्लाह के बाद  कुछ  कहने योग्य…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सराहनीय प्रयास रहा आपका, मुझे ग़ज़ल अच्छी लगी, स्वाभाविक है, कपूर साहब की इस्लाह के बाद  और…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आपका धन्यवाद,  आदरणीय भाई लक्ष्मण धानी मुसाफिर साहब  !"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"साधुवाद,  आपको सु श्री रिचा यादव जी !"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service