Added by Satyanarayan Singh on September 25, 2019 at 10:47pm — 6 Comments
छंद - मत्तगयंद सवैया
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शिल्प= भगण×7+2 गुरु ,
23 वर्ण यति 12,11
सावन मास रही तिथि पूनम,
क्रूर महा शिशुपाल सँहारे।
युध्द मझार उतार दिया रिपु ,
शीश सुदर्शन को कर धारे।
घायल अंगुलिका हरि रक्षति,
द्रौपदि अंबर को निज फारे।
वस्त्र हरे बलवान दुशासन,
चीर बढा हरि कर्ज उतारे।।
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Satyanarayan Singh on August 15, 2019 at 8:07pm — No Comments
दुर्मिल सवैया
अबला नहिं आज रही महिला, सबला बन राज करे जगती।
मुहताज नहीं सब काज करे, मन ओज अदम्य सदा भरती ।।
धरती नभ नाप रही पल में, प्रतिमान नये नित है गढ़ती।
यह बात सभी जन मान गये, अब नार नहीं अबला फबती।१।
परिधान हरा तन धार खुशी, ललना गल धीरज हार गहा।
सिर बाँध दुकूल उमंग नया, मन केशरिया रँग आज लहा।।
शुभ कंगन साहस हाथ भरा, मुख आस सुहास विराज रहा।
पथ उन्नति एक चुना उसने, बिसरे सब पंथ विराग…
ContinueAdded by Satyanarayan Singh on June 25, 2018 at 8:26pm — 13 Comments
विधाता छंद
जताएं मातृ दिन पर हम.....
जगत में मात के जैसा,नहीं दूजा दिखा भाई !
कहो माता कहो मम्मी, कहो चाहे उसे माई !
पुकारे बाल माँ जब भी, तुरत वह दौडकर आई !
बुरा माना नहीं उसने, कभी मन बाल रुसवाई …
ContinueAdded by Satyanarayan Singh on May 13, 2018 at 3:30am — 4 Comments
कह-मुकरियाँ
जाऊँ जहाँ वहीं वह होले,
संग संग वह मेरे डोले,
जीवन उसके बिना अलोन,
क्यों सखि साजन ? ना सेल फोन !
हाल चाल सब रखता मेरा,
हमदम सा वह मीत घनेरा,
मै कश्ती तो वह है साहिल,
क्यों सखि साजन ? ना मोबाइल !
चहल पहल वह रौनक लाये,
महफिल में भी रंग जमाये,
उसके बिन जीवन है काहिल,
क्यों सखि साजन ? ना मोबाइल !
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मौलिक व अप्रकाशित
Added by Satyanarayan Singh on May 1, 2018 at 3:00pm — 6 Comments
विहग निज चोंच में देखो,,,,,,
विहग निज चोंच में देखो, अहा! मछली दबोचे है|
फँसी खग कंठ में मछली, पड़े तन पर खरोंचे हैं ||
विहग औ मीन दोनों इक, सरीखे ही अबोले हैं |
मगर इक हर्ष दूजी भय, सँजोये आँख बोले हैं |१ |
उदर की भूख मिट जाए, यही चाहत विहग पाले |
वहीं पर मीन के देखो, पड़े हैं जान के लाले ||
सलामत जान की अपने, खुदा से चाहती मछली |
निवाला छूट ना जाए, यही मन सोचती बगुली |२ |
मौलिक और अप्रकाशित…
Added by Satyanarayan Singh on March 30, 2018 at 1:30pm — 12 Comments
आँसू बहते आँख से, कौन जुगत हो बंद ?
जहाँ कुशल नलसाज के, असफल सारे फंद।
असफल सारे फंद, काम ना कोई आये।
केवल साँचा मीत, उसे तब कर दिखलाये।।
सत्य जगत में मीत, वही कहलाता धाँसू।
कर देता जो बंद, आँख से बहते आँसू।।
- मौलिक व अप्रकाशित
Added by Satyanarayan Singh on March 5, 2017 at 8:00pm — 8 Comments
मत्तगयंद सवैया :-
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दो इतनी बस भीख मुझे मन, और न माँग रहा कुछ स्वामी|
नाम जपे दिन रात सदा मुख, गान करे रसना गुण स्वामी||
रूप मनोहर देख सदा दृग, शीतल हो मन पावन स्वामी |
याचक “सत्य” करे विनती नित , शीश नवा पद पंकज स्वामी|१|
याद बड़ी शुभदायक औ तव, रूप बड़ा मन मोहक स्वामी|
भक्त कृपालु उदार मना तुम, भक्त कृपा लहते तव स्वामी||
बन्धु सखा गुरु मात पिता तुम, हो भव सागर तारक स्वामी|
जीवन की तुम आस प्रभो! तुम,हो…
ContinueAdded by Satyanarayan Singh on February 21, 2017 at 11:30pm — 2 Comments
करूँ वंदना आज वागीश्वरी की, सुनो प्रार्थना माँ हमारी सभी।
भरो ज्ञान का मात भंडार ऐसे, लुटाऊँ जहाँ में न रीते कभी।।
विराजो सदा आप वाणी हमारी, फलीभूत हो कामना माँ सभी।
लिखूँ गीत गाऊँ सुनाऊँ ख़ुशी से, दुलारा जहाँ में कहाऊँ तभी।१।
दिलों में अँधेरा समाया सभी के, उजाला दिलों में करो ज्ञान से।
मुझे मात दो कंठ ऐसा सुरीला, झरे माँ सुधा गीत के गान से।।
करो लेखनी की जरा धार पैनी, निखारो सदा शिल्प के सान से।
कला पक्ष औ भाव दोनों सँवारो, सधे साधना आपके ध्यान…
Added by Satyanarayan Singh on February 1, 2017 at 12:30am — 7 Comments
थी भोर की बेला सुहानी, भीड़ गंगा तट जुटी !
इक वृद्ध सन्यासी चला, गंगा नहा अपनी कुटी !
ओढ़े दुशाला राम नामी, गेरुवा पट रंग था !
कर में कमंडल था सुशोभित, भस्म चर्चित अंग था !!
प्रभु नाम का शुभ जाप करता, साधु कुछ…
ContinueAdded by Satyanarayan Singh on November 6, 2016 at 10:09pm — 4 Comments
Added by Satyanarayan Singh on October 31, 2016 at 1:21am — 11 Comments
बम बम भोलेनाथ
बम बम भोलेनाथ शिव, आशुतोष भगवान।
नीलकंठ विरुपाक्ष अज, शंकर कृपानिधान।।
शंकर कृपानिधान, शिवाप्रिय भव त्रिपुरारी।
महादेव सर्वज्ञ, यज्ञमय हवि कामारी।।…
ContinueAdded by Satyanarayan Singh on March 7, 2016 at 2:00am — 2 Comments
दोहा छंद आधारित गीत
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मन सहिष्णु भटके नहीं,
लेकर भाव अमर्ष
राह हमें उत्कर्ष की, नित दिखला नववर्ष.....
झाँक रही दीवार से,
खूंटी ओढ़े गर्द
साल मुबारक हो नया,
कहता मौसम सर्द
जंत्री नूतन साल की, करती ध्यानाकर्ष
लौटें लेकर सुदिन सब,
उत्सव औ त्यौहार
मिलना जुलना हो सहज,
सरल भाव व्यवहार
जाति धर्म के नाम पर, हो न कभी संघर्ष
गीत छंद कविता गजल,
ललित कलेवर…
ContinueAdded by Satyanarayan Singh on December 23, 2015 at 9:00pm — 12 Comments
दिवस तीस औ पक्ष दो, छह रितु बारह मास।
होली उत्सव को सभी, बता रहे हैं खास।१।
आता समता को लिए, होली का त्यौहार।
सारे जग को बांटता, नेह भरा उपहार ।२।
खुशियाँ खूब उलीचता, फाल्गुन पूनम रात।
ख़ुशी साल भर ना खले, यही सोच मन…
ContinueAdded by Satyanarayan Singh on February 28, 2015 at 8:54pm — 23 Comments
स्वागतम नव वर्ष का
हर्ष से आओ करें मिल, स्वागतम नव वर्ष का ।
आश जो हर मन जगाये, आज कारक हर्ष का ।।
कर्म को मुखरित करे वह, लक्ष्य नव उत्कर्ष का ।
शोध अभिनव जो कराये, साक्ष्य दृढ निष्कर्ष का ।१।…
ContinueAdded by Satyanarayan Singh on December 28, 2014 at 7:00pm — 3 Comments
मस्त वर्षा ऋतु निराली !
मस्त वर्षा ऋतु निराली, मेघ बरसे साँवरा ।
भीगती है सृष्टि सारी, देख मन हो बाँवरा ।।
झूमता सावन लुभाता, शोर करती है हवा ।
मग्न होकर मोर नाचें, गीत गाते हैं…
ContinueAdded by Satyanarayan Singh on July 27, 2014 at 7:30pm — 10 Comments
अवनी अम्बर जीव चराचर
सुख पा सब हर्षाये
वर्षा प्रेम सुधा बरसाये
प्रियतम को आमंत्रित करने
मेघ दूत बन आये
नील गगन के मुख मंडल पर
श्वेत श्याम घन छाये
वर्षा प्रेम सुधा बरसाये
बहे पवन मदमस्त झूम के
पुरवा मन अलसाये
प्रेम मिलन संकेत सरित ने
अर्णव संग जताये
वर्षा प्रेम सुधा बरसाये
छैला दिनकर आज धरा से
छिप छिप नैन लड़ाये
प्रेम जलज बिहँसे इस जग…
ContinueAdded by Satyanarayan Singh on July 27, 2014 at 1:00pm — 12 Comments
उम्मीदों का जन आदेश
उम्मीदों का जन आदेश, करे उजागर मन आवेश।
मतदाता के मन की राज, बूझ रहे हैं पंडित आज।१।
घोषित होते ही परिणाम, दिग्गज आज हुए गुमनाम।…
ContinueAdded by Satyanarayan Singh on May 24, 2014 at 10:00pm — 12 Comments
जेठ की तपती दुपहरी!
जेठ की तपती दुपहरी, लगे नीरव शांत।
धूप झुलसा रही काया, स्वेद से मन क्लांत।।
शाख पर पक्षी विकल है, गेह में मनु जात।
सूर्य अम्बर आग उगले, जीव व्याकुल गात।१।
जल भरी ठंडी सुराही, पान कर मन तुष्ट।
दूध माखन और मठठा, तन करे है पुष्ट।।
पना अमरस संग चटनी, भा रहे पकवान।
कर्ण को मधुरिम लगे फिर, आज कोयल गान।२।
गूँजता अमराइयों में, बिरह पपिहा राग।
गाँठकर छाया दुपहरी, पढ़ रही निज भाग।।
कृष हुई सरिता निराली, सूख मंथर…
Added by Satyanarayan Singh on May 20, 2014 at 6:00pm — 33 Comments
ऋतु गर्मी की आई
छन्न पकैया छन्न पकैया, ऋतु गर्मी की आई|
आँधी धूल उडाते चलती, बहे गर्म लू भाई|१|
छन्न पकैया छन्न पकैया, नीम सिरिष हैं फूले |
हवा सुगंध बिखेरे उनकी, खुशबू से मन झूले|२|…
ContinueAdded by Satyanarayan Singh on May 2, 2014 at 9:30pm — 24 Comments
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