उम्मीदों का जन आदेश
उम्मीदों का जन आदेश, करे उजागर मन आवेश।
मतदाता के मन की राज, बूझ रहे हैं पंडित आज।१।
घोषित होते ही परिणाम, दिग्गज आज हुए गुमनाम।
सत्ता थी सुन जिनके हाथ, आज पकड़ कर बैठे माथ।२।
जम कर नेता किए प्रचार, हार गए अब करें विचार।
शुरू हुआ मंथन का दौर, जनता पर अब देना गौर।३।
महंगाई व भ्रष्टाचार, इनसे जनता थी बेजार।
सत्ता धारी थे मदहोश, समझ न पाये जन आक्रोश।४।
परिवर्तन के थे आसार, इसीलिए बदली सरकार।
बात पते की करता देश, लोकतंत्र ने बदला वेश।५।
-मौलिक व अप्रकाशित
Comment
परम आदरणीय सौरभ जी सादर
सर्वप्रथम रचना सराहने एवं बधाई हेतु आपका ह्रदय से आभार आदरणीय
राज के सन्दर्भ में गफलत हो गई है उसीप्रकार देना गौर के स्थान पर करना गौर ही उचित है. किया को किआ नहीं लिखा जा सकता इस सन्दर्भ में आप द्वारा प्रस्तुत उदाहरण तर्कसंगत लगता है आदरणीय. त्रुटियों के लिए खेद प्रकट करता हूँ. इस सन्दर्भ में एवं भविष्य में आपके सभी सुझाव सर आँखों पर आदरणीय.
उचित मार्गदर्शन हेतु सादर धन्यवाद
सुन्दर छन्द प्रयास के लिए बधाई स्वीकारें, आदरणीय सत्यनारायणजी.
मतदाता के मन की राज.. राज स्त्रीलिंग तो नहीं. मतदाता के मन का राज उचत होगा न !
जनता पर अब देना गौर.. ग़ौर दिया नहीं किया जाता है. अतः यह चरण जनता पर अब करना गौर कहा जाना सहीं होगा.
आपने किये को किए क्यों किया ? किया को क्या किआ लिखा जा सकता है ? नहीं न !
इसके अलावे कोई नियम हो तो बताइयेगा. हाँ, के लिए में लिये नहीं होता.
जो उचित हो हमसभी से साझा कीजियेगा.
सादर
आ. बृजेश जी रचना सराहने एवं बधाई हेतु सादर आभार साथ ही आपके प्राप्त सुझाओं का स्वागत है आदरणीय
आ. गिरिराज जी रचना सराहने एवं बधाई हेतु आपका आभारी हूँ.
अच्छी रचना है! आपको बहुत बधाई!
'परिनाम'......रचना की भाषा की दृष्टि से 'परिणाम' लिखा जाना बेहतर होगा.
'किये' गलत तो नहीं लेकिन 'किए' अधिक उचित होता है.
आदरणीय सत्यनारायण भाई , सुन्दर चुनावी रचना के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥
आ. जितेन्द्र जी रचना सराहने एवं बधाई हेतु आपका आभारी हूँ.
आदरणीय डॉ. गोपाल नारायन जी रचना को समय देने तथा सम्यक विश्लेषण हेतु आपका ह्रदय से आभार
आदरणीय आपने बिलकुल सही फरमाया है की उद्बोधन का चला है दौर में मात्रे अधिक है i इसीलिये यहाँ प्रवाह बाधित होता है i अतएव मूल रचना में निम्नवत संशोधन प्रस्तावित है.
शुरू हुआ मंथन का दौर
आदरणीय लडिवाला जी रचना की सराहना एवं बधाई हेतु सादर आभार
सच! आखिर जनता जनार्दन ने तख्ता पलट ही दिया, सुंदर दोहावली आदरणीय सत्यनारायण जी .हार्दिक बधाई आपको
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online