For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जेठ की तपती दुपहरी!

जेठ की तपती दुपहरी!

जेठ की तपती दुपहरी, लगे नीरव शांत।
धूप झुलसा रही काया, स्वेद से मन क्लांत।।
शाख पर पक्षी विकल है, गेह में मनु जात।
सूर्य अम्बर आग उगले, जीव व्याकुल गात।१।

जल भरी ठंडी सुराही, पान कर मन तुष्ट।
दूध माखन और मठठा, तन करे है पुष्ट।।
पना अमरस संग चटनी, भा रहे पकवान।
कर्ण को मधुरिम लगे फिर, आज कोयल गान।२।

गूँजता अमराइयों में, बिरह पपिहा राग।
गाँठकर छाया दुपहरी, पढ़ रही निज भाग।।
कृष हुई सरिता निराली, सूख मंथर चाल।
फूल गुलमोहर खिले हैं, आज देखो लाल।३।

शयन गृह वातानुकूलित, पेय शीतल मांग।
मन ललचता देख कुल्फी, ठण्डई औ भांग।।
ग्रीष्म ऋतु की छुट्टियों में, सुरमई हो शाम।
घूमकर शिमला मनाली, कर रहे विश्राम।४।

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 1140

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 2, 2014 at 8:43am

प्रतिक्रिया-छन्द के लिए सादर धन्यवाद आदरणीय

Comment by Satyanarayan Singh on June 1, 2014 at 1:23pm

परम आदरणीय सौरभ जी सादर 

 

जेठ की तपती दुपहरी, से हुआ मन क्लांत  

आपका सम्यक विवेचन, कर गया मन शांत  

लग रहे अनमोल सारे, शब्द स्वाति बूँद

तृप्त मेरा मन हुआ पढ़, नैन सोचें मूँद

शब्द संयोजन सधे ना, तब लगे पद हेय

धूप में काया झुलसती, लग रहा अब गेय

आपकी ही दाद से है, लेखनी आबाद

स्नेह औ आशीष खातिर, सादर धन्यवाद......... 

  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 1, 2014 at 1:19am

रूपमाला छन्द सुन्दर, ग्रीष्म ऋतु की बात
सत्यनारायण खुले तो, खिल उठे जजबात
दूसरा पद किन्तु मुझको, लग रहा बेजान  
’धूप में काया झुलसती’, यों करें श्रीमान  

उपरोक्त दूसरे पद के विषम चरण के अलावे बहुत ही सधा छन्द हुआ है, आदरणीय सत्यनारायणजी. यह चरण भी शब्द-संयोजन के सधे न होने के कारण अव्यवस्थित मात्र है.
अन्य, इस सार्थक प्रयास के लिए हार्दिक बधाइयाँ, आदरणीय
 

Comment by Satyanarayan Singh on May 27, 2014 at 9:48pm

आ. विजय निकोरे जी सादर 

        

       रचना आपको दूसरी बार और भी अच्छी लगी है यह जानकर ख़ुशी हुई मेरा मानना है की आपके इस प्रतिक्रिया से लेखनी को बल मिला है. तथा मेरा लिखना सार्थक हुआ ऐसा मेरा मानना है. सादर धन्यवाद.आदरणीय 

Comment by Satyanarayan Singh on May 27, 2014 at 9:45pm

आ. गिरिराज जी सादर 

   रचना सराहने एवं बधाई हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ. आदरणीय 

Comment by vijay nikore on May 27, 2014 at 10:45am

आपकी यह रचना पहले भी पढ़ी थी, अच्छी लगी थी, अब दूसरी बार और भी अच्छी लगी है। बधाई।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 26, 2014 at 12:34pm

आदरणीय सत्यनारायण भाई , सुन्दर छंद रचना के लिये बधाइयाँ । ग्रीष्म का कोई भी हिस्सा अछूता नही है । पुनः बधाई ।

Comment by Satyanarayan Singh on May 23, 2014 at 4:56pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय सुरेन्द्र कुमार जी 

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 23, 2014 at 12:43pm

जल भरी ठंडी सुराही, पान कर मन तुष्ट। 
दूध माखन और मठठा, तन करे है पुष्ट।।
पना अमरस संग चटनी, भा रहे पकवान।

सुन्दर रचना जेठ की दुपहरी के वे पल याद आ गए जब हम इसको झेलते विद्यालय आते जाते नदी का गर्म बालू लू चेहरे पर गर्म हवाएँ रंग ही बदल देतीं थीं
भ्रमर ५

Comment by Satyanarayan Singh on May 23, 2014 at 11:44am

रचना सराहने एवं बधाई हेतु सादर आभार आदरणीय धामी जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service