दोहा छंद आधारित गीत
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मन सहिष्णु भटके नहीं,
लेकर भाव अमर्ष
राह हमें उत्कर्ष की, नित दिखला नववर्ष.....
झाँक रही दीवार से,
खूंटी ओढ़े गर्द
साल मुबारक हो नया,
कहता मौसम सर्द
जंत्री नूतन साल की, करती ध्यानाकर्ष
लौटें लेकर सुदिन सब,
उत्सव औ त्यौहार
मिलना जुलना हो सहज,
सरल भाव व्यवहार
जाति धर्म के नाम पर, हो न कभी संघर्ष
गीत छंद कविता गजल,
ललित कलेवर कांत
करें सृजन हम काव्य नव,
हो भाषा संभ्रांत
शोध सोच नव बिंदु सह, नव मानक दे हर्ष
बने मेक इन इंडिया,
जन मन का आधार
अपना डिजिटल इंडिया,
हो सपना साकार
प्रगति मंत्र यह हो खरा, मानें सभी सहर्ष
निकट बिदाई की घड़ी,
दिखा अनमना साल
यादों की गठरी थमा,
चला फुलाकर गाल
दृश्य शुभग छक के पियें, शाश्वत नयन सतर्ष
- मौलिक व अप्रकाशित
Comment
सादर धन्यवाद आदरणीय नीरज जी
बहुत उत्कृष्ट लगा मुझे तो .... हर शब्द मानो अर्थपूर्ण और नाप तौल कर रखे गए हों जैसे। बहुत बधाई इस गीत के लिए ।
आ. सतविंदर जी उत्साहवर्धन एवं बधाई के लिए आपका हार्दिक आभार
आदरणीय आशुतोष जी उत्साहवर्धन एवं बधाई के लिए आपका हार्दिक आभार
आदरणीया प्रतिभा जी उत्साहवर्धन एवं बधाई के लिए आपका हार्दिक आभार
आदरणीय सुनील सरना जी उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार
आदरणीय समर कबीर जी उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार
aadarneey नव बर्ष के आगमन से पहले ही इतनी शानदार रचना पढने को मिल गयी ..इस रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर
निकट बिदाई की घड़ी,
दिखा अनमना साल
यादों की गठरी थमा,
चला फुलाकर गाल
दृश्य शुभग छक के पियें, शाश्वत नयन सतर्ष.......नए वर्ष का सुन्दर अभिनंदन किया है आपने आदरणीय सत्यनारायण जी ,तहे दिल से बधाई स्वीकार करें इस सुन्दर रचना पर
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