For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

''आग पर आप भी इक दिन चलेंगे''

२१२      २१२२         २१२२

आग पर आप भी इक दिन चलेंगे

मेरे अहसास जब तुम में उगेंगे

.

 

फूल सा तन महकने ये लगेगा

याद में रातदिन जब दिल जलेंगें

.

 

चाँद सा  रूप निखरेगा सुनहरा

इश्क की धूप में गर जो तपेंगें

.

आइना बातें भी करने लगेगा

यूँ घड़ी दो घड़ी पे गर सजेंगे

.

 

रातभर रतजगे आँखें करेंगी

सुबहों-शाम आप भी रस्ता तकेंगे

.

*****************************************

मौलिक व् अप्रकाशित (c) 'जान' गोरखपुरी

*****************************************

Views: 431

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on August 1, 2015 at 9:15pm

मेरी बात को मान देने के लिए शुक्रिया आ० भाई मनोज ज़ी!

Comment by मनोज अहसास on August 1, 2015 at 9:03pm
बहुत आभार
मै समझ गया भाई
सादर
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on August 1, 2015 at 8:38pm

आ० भाई मनोज जी,आपने बहर निभाने के लिए भावपक्ष से समझौते की बात किन आधार पर कही है मुझे समझ नही आया...मै यह निश्चित तौर पर कह सकता हूँ की भले बहर में कई बार तबदीली करूं,पर रचना/शेर के भाव से मुझे समझौता करना कत्तई पसंद नही है!अगर बहर में मैं भाव नही रख पाऊं तो मैं मुक्त रचना करना अधिक श्रेयस्कर समझता हूँ!  

प्रस्तुत गज़ल में मतला देखिये............

आग पर आप भी इक दिन चलेंगे

मेरे अहसास जब तुम में उगेंगे..............................यह सहज जैसे हुआ वैसा ही लिखा है! 

बहर को मैं  शब्द बढ़ाकर   २१२२ /२१२२/ २१२२ भी कर सकता था! पर नही किया क्युकी भाव प्रभावित होता!

इसी सन्दर्भ में ये बात कहना चाहूँगा कि कुछ समय पूर्व मैंने मंच पर एक गज़ल ''मरासिम'' रक्खी थी! उस पर आ० जनों ने कई त्रुटिया की ओर मेरा ध्यान दिलाया! जिनपर सुधार करना मैंने निश्चय किया...पर सुधार करने के क्रम में भाव परिवर्तन के कारन मै अभी तक उसे सुधारकार्य पूर्ण नही कर पाया हूँ! चाहता तो अन्य भाव के साथ मै दुसरे शेर कहकर गज़ल की त्रुटियाँ दूर कर लेता!

सादर!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on August 1, 2015 at 8:18pm

सादर आभार आ० मिथिलेश सर!

Comment by मनोज अहसास on August 1, 2015 at 5:26pm
बहुत खूब सर
ऐसा लगता है
बहर निभाने में भाव कुछ छूट गए है
सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 1, 2015 at 3:54pm

आदरणीय कृष्ण भाई जी बढ़िया ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं 

आइना बातें भी करने लगेगा

यूँ घड़ी दो घड़ी पे गर सजेंगे

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
13 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
yesterday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  रीति शीत की जारी भैया, पड़ रही गज़ब ठंड । पहलवान भी मज़बूरी में, पेल …"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service