२१२ / २१२ / २१२
इश्क के बाद है क्या मिला?
वाँ भी था याँ भी पर्दा मिला
.
अब सनम जबकि तुम खो गये
ख़ुद से मिलने का मौक़ा मिला
.
उनके वादों का हासिल है क्या?
हाथ वादों के वादा मिला
.
हमने दुनिया बहुत देखी पर
कोई मुझको न तुमसा मिला
.
लाख़ कोशिश की हमने मगर
दिल से दिल का न सौदा मिला
.
जब खुला ख़त मेरे वास्ते
नाम हर शय में उसका मिला
.
बेतकल्लुफ़ न इतना हो “जान”
आज तक तुझको है क्या मिला?
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मौलिक व् अप्रकाशित (c) 'जान' गोरखपुरी
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Comment
आ० गिरिराज सर आपके मुक्तकंठ से प्रसंशा पाकर गज़ल पूर्ण हुयी,मन गदगद हुआ! नमन!
गज़ल को स्नेह देने के लिए हार्दिक आभार आ० इन्तजार सर!!
तहेदिल से शुक्रिया आ० प्रतिभा जी!
आ० विनय सरजी! आत्मीय प्रसंशा के लिए तहेदिल से आभार!
आ० राजेश कुमारी ज़ी,आपको गज़ल पसंद आई रचनाकर्म सार्थक हुआ! हौसलाफजाई के लिए हार्दिक आभार!
अब सनम जबकि तुम खो गये
ख़ुद से मिलने का मौक़ा मिला -- बहुत खूब आदरनीय , कृष्णा भाई , ग़ज़ल के लिये हार्दिक बधाइयाँ ।
आदरणीय कृष्णा जी उम्दा शेर हैं ......
अब सनम जबकि तुम खो गये
ख़ुद से मिलने का मौक़ा मिला
अच्छी ग़ज़ल के लिए आपको बधाई आ० कृष्ण मिश्रा जी
// अब सनम जबकि तुम खो गये
ख़ुद से मिलने का मौक़ा मिला // , वाह , वाह , बहुत उम्दा , बधाई इस ग़ज़ल के लिए आदरणीय..
सुन्दर ग़ज़ल कही है कृष्ण भैया,तहे दिल से दाद लीजिये |
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