2212 2212 22
क्या ख़ूब आफ़त पाल बैठा हूँ
दिल में शराफ़त पाल बैठा हूँ
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मुफ़्त इक मुसीबत पाल बैठा हूँ
बुत की मुहब्बत पाल बैठा हूँ
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क्यूँ ये सितारे हैं ख़फ़ा मुझसे?
जो तेरी चाहत पाल बैठा हूँ
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वो बेवफा कहने लगा मुझको
जबसे मुरव्वत पाल बैठा हूँ
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कोई तो तुम अब फ़ैसला दे दो
पत्थर की सूरत पाल बैठा हूँ
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गर तू तगाफुल पे अड़ा है
सुन मैं भी वहशत पाल बैठा हूँ
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वारे तमन्ना-ए-वफ़ा-ए-य़ार
ख़ुद से बग़ावत पाल बैठा हूँ
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दीवानगी है गो ख़ुराके इश्क़
हंगाम फितरत पाल बैठा हूँ
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मौलिक व् अप्रकाशित © ‘जान’ गोरखपुरी
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Comment
आ० दीदी राजेश कुमारी जी..तहेदिल से शुक्रिया गज़ल पर सकारात्मक प्रतिकिया और मार्गदर्शन के लिए!.....आ० मतला पर शुरुआत में ही मैंने बहुत विचार किया था ...इस सन्दर्भ में आ० गिरिराज सर की गज़ल ''ये मेरा असर है'' और उस पर हुयी चर्चा ने मार्गदर्शन का काम किया! और मेरी ये गजल संभव हो सकी!
शिज्जू सर ने जिहाफ़ पर जो बात ध्यान दिलाई है उस आधार पर निश्चित ही गज़ल में संशोधन करना पड़ेगा ..आगे से बहर की संभावनाओ पर गुनीजनों से मशवरा लेने के बाद ही इस तरह की गजल पर आगे बढूँगा! सादर!
कृष्णा भैया मतला बहुत बढ़िया है पर भैया काफिया तो आफत पर टिक गया जरा गौर करें
बाकी शेर तो सभी शानदार हैं शिज्जू भैया की बात भी सही है बहरहाल बधाई तो बनती है सुन्दर प्रयास हुआ कुछ संशोधन उपरान्त ग़ज़ल निखर उठेगी
आदरणीय कृष्णा भाई , बढिया मतला के साथ बहुत अच्छी गज़ल कही है , हार्दिक बधाई आपको
आ० मुकेश जी सादर आभार!
तहेदिल से शुक्रिया आ० मिथिलेश सर!
आ० गोपाल सर,हार्दिक आभार व् नमन! सादर!
हार्दिक आभार आ० विजय सर!सादर!
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