22/22/22/22/22
तुमौर मै हमारी छोटी सी दुनिया
सागर से बारिश बारिश से नदिया
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मीठी होती है मेहनत की रोटी
मैंने देखी है माँ दरते चकिया
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ए.सी कूलर ने छीनी आबो-हवा
याद आती है नीम-छांव की खटिया
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पक्की छत में जगह उसी को न मिली
सदियों रहा जो बन छप्पर की थुनिया
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याद मुझे पुरनम बस तू है आती
मन महकाये जब बौंराई अमिया
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दिल का सौदा क्या खाक वो करेगा?
नुकसान-नफ़ा सोचे तबीयते बनिया
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औराके-दिल पर बोश हर्फ़ हर्फ़ ये
अशयार मेरे हैं सब तेरी पतिया
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मौलिक व् अप्रकाशित © 'जान' गोरखपुरी
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Comment
प्रिय कृष्ण , मुझे एक प्रयोग जैसी लगी यह गजल . तुक तीन तरह के होते है अगर आप उत्कृष्ट कोटि के तुक लेकर रचना करे तो आपकी प्रतिभा के साथ न्याय होगा ,
तहेदिल से आभार आ० श्याम नरायण वर्मा जी!
सादर!
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर ग़ज़ल पर |
आदरणीय कृष्ण भाई जी, इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
इस प्रस्तुति के हवाले से कुछ महत्वपूर्ण बातें जो मैंने अनुभव की साझा कर रहा हूँ. फैलुन फैलुन की आवृत्ति वाली वे बहरे अधिक प्रसिद्द हुई है जिनमें फैलुन फैलुन की आवृत्ति के बाद एक फा भी लिया जाता है. इससे मिसरे के विन्यास में पूर्णता का आभास होता है. जैसे आपका ये मिसरा - सागर से बारिश बारिश से नदिया
इसे अगर यूं कहे तो मिसरे का विन्यास ज्यादा अच्छा लगता है - सागर से बारिश है, बारिश से नदिया
दूसरी बात फैलुन फैलुन की आवृत्ति वाली बह्रों में शब्द-कलों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए ताकि मिसरों के वाचन के क्रम में लयभंगता की स्थिति उत्पन्न न हो. जैसे आपका मिसरा
------------ सागर /से बा/ रिश है / बारिश /से नदि/ या----- यानी -------
--------------फैलुन/फैलुन/फैलुन/फैलुन/फैलुन/फा
इसमें पांच चौकल और एक द्विकल ने मिसरे को कितना लयात्मक कर दिया है.
अब इस मिसरे को देखिये----पक्की छत में जगह उसी को न मिली---- इसमें चौकल बनने की कठिनाई ने इसमें लयभंगता की स्थिति ला दी है. किसी भी पद्य विधा में लयात्मक सम्प्रेषण की प्राथमिकता होती है और यह केवल और केवल शब्द कलों के माध्यम से ही संभव है. सादर
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