For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सच्ची सुहागन (लघुकथा)

पूरे दिन घर में आवागमन लगा था | दरवाज़ा खोलते बंद करते श्यामू परेशान हो गया था | घर की गहमागहमी से वह इतना तो समझ चूका था कि बहूरानी का उपवास हैं | सारे घर के लोग उनकी तीमारदारी में लगें थें | माँजी सरगी की तैयारी के लिय उसे बार-बार आवाज दे रही थी | सारी सामग्री उन्हें देने के बाद वह खाना खिलाने लगा घर के सभी सदस्यों को | फिर फुर्सत हो माँजी से कह अपने घर की ओर चल पड़ा |
बाजार की रौनक देख अपनी जेब टटोली महज दो सौ रूपये | सरगी के लिय ही ५० रूपये तो खर्च करने पड़ेंगे आखिर त्यौहार पर फल इतने महंगे जो हो जातें | मन को समझा उसने सरगी के लिय आधा दर्जन केले खरीद ही लिये | वह भी अपनी दुल्हन को सुहागन रूप में सजी-धजी देखना चाहता था ,अतः  १०० रूपये की साड़ी और सृंगार सामग्री भी ले ली | १०० रूपये की साड़ी को देख सोचने लगा मेरी पत्नी तो इसमें ही खुश हो जायेगी | उसकी धोती में बहत्तर तो छेद हो गये हैं | अब कोठी वालों की तरह न सही ,पर दो चार साल में तन ढ़कने का एक कपड़ा तो दिला ही सकता हूँ | 'बहूरानी की तरह मुहं थोड़े फुलाएगी | कैसे माँजी की दी साड़ी पर बहूरानी नाक-भौं सिकोड़ रही थी | फिर छोटे मालिक के साथ जाकर दूसरी साड़ी लें ही आईं|'
मन में गुनते हुय ख़ुशी-ख़ुशी सब कुछ लेकर घर पहुंचा| अपने छोटे साहब की तरह ही वह भी अपनी पत्नी की आंख बंद करते हुय बोला, "सोचो-सोचो क्या लाया हूँ मैं ?"
"बड़े खुश लग रहें हो | लगता हैं बच्चों को, कल के लिय भरपेट खाने को लाये हो !!"

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 767

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by savitamishra on November 2, 2015 at 11:46pm

आभार शेख भाई आपका।.....असल में बड़े कमजोर हैं लिखने में अतः समझ न आ रहा कि कहाँ टंकण त्रुटी हैं...कि बताएंगे आप..!! आभार पुन आपका 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 2, 2015 at 8:45am
आदरणीया सविता मिश्र जी कथा मेंकुछ टंकण त्रुटियों पर ध्यान दीजिएगा।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 2, 2015 at 8:43am
बहुत अच्छी रचना है आदरणीया सविता मिश्र जी। अंतिम पंक्ति ज़ोरदार है, सब कुछ कह रही है।मेरे विचार से कोई पंक्ति जोड़ने की ज़रूरत नहीं है। हो सकता है सुधीजन को कहीं कहीं विवरण कुछ ज़्यादा लगे। भावपूर्ण संदेश वाहक रचना के लिए बहुत बहुत हार्दिक बधाई आपको।
Comment by savitamishra on November 1, 2015 at 3:23pm

आभार आदरणीय निता दी जी ....कुछ तो कमी सी हैं जो हमारे पल्ले न पड़ रही....फिर भी आपको भाई आभार

अभी आपके कमेंट के बाद दिदखि यह तो फिर पढ़े ...लग रहा एक लाइन और जोड़ दें....मन में अपनी पत्नी और बहूरानी की तुलना करते हुये अपनी पत्नी का ही पलड़ा भारी पा रहा था.....कैसी रहेगी फिर .._/\_सादर

Comment by Nita Kasar on November 1, 2015 at 1:28pm
ग़रीबी भी एेसा रोग जो अरमानों को उड़ने का मौक़ा नहीं देती,जहाँ परिवार के लिये पहली प्राथमिकता भोजन हो वहाँ पत्नि और क्या सोचेंगी संवेदनशील कथा के लिये हार्दिक बधाईयां आद०सविता मिश्रा जी ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
Tuesday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर प्रतिक्रिया और…"
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब स्नेहिल समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी प्रदत्त विषय पर बहुत सार्थक और मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने। इसमें एक स्त्री के…"
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान ______ 'नवेली की मेंहदी की ख़ुशबू सारे घर में फैली है।मेहमानों से भरे घर में पति चोर…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service