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देख कर तुझको , निखर जाएॅगे.

देख कर तुझको , निखर जाएॅगे।
हम आइना बनके , सॅवर जाएॅगे ।.

तिनका-तिनका है मेरा, पास तेरे
तुझसे बिछडे तो , बिखर जाएॅगे ।

दिल हमारा औ तुम्हारा है , इक
घर से निकले , तो भी घर जाएॅगे।

दूरियों में ही , रहे महफूज हैं हम
पास जो आये , तो डर जाएॅगे ।

वो समन्दर था , मगर भटका नहीं
हम तो दरिया हैं , किधर जाएॅगे ।

दोस्ती भीड औ धुॅये से कर ली , अब
छोडकर गाॅव अपना शहर जाएॅगे ।
सच्चे इक प्यार के मोती के लिये
हम कई समंदर में , उतर जाएॅगे ।
सोचने ही भर से जिन्दा हूॅ "अजय"
मिल गये तुझसे तो , मर जाएॅगे।


मौलिक वअप्रकाशित
अजय कुमार शर्मा

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Comment by गिरिराज भंडारी on January 12, 2016 at 3:43pm

आदरनीय अजय भाई , अच्छी गज़ल हुई है , आपको हार्दिक बधाई ।

Comment by maharshi tripathi on January 10, 2016 at 6:29pm

अच्छी प्रस्तुति है भाई जी ,परन्तु नियम का पालन भी जरुरी है |

Comment by Samar kabeer on January 10, 2016 at 10:50am
जनाब अजय शर्मा जी आदाब,आपका प्रयास अच्छा है,में जनाब रवि शुक्ल जी की बात से सहमत हूँ |
Comment by Shyam Narain Verma on January 9, 2016 at 4:24pm
इस सुंदर प्रस्तुति के लिए तहे दिल बधाई सादर
Comment by ajay sharma on January 8, 2016 at 11:19pm

koshish to karta hoo ...par har baar seekhne  se rah jata hoo.....rachna ka sarahne hetu shukriya 

Comment by Ravi Shukla on January 8, 2016 at 4:53pm

आदरणीय अजय जी सुन्‍दर प्रयास हुआ है यदि रचना के पहले इसका अरकान या बह्र लिख देते तो समझने में और आसानी हो जाती । और यह मंच का नियम भी है ।

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