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गुज़र रहा हूँ उसी डगर से

121 22 121 22

है  आई खुश्बू तेरी जिधर से ।

गुज़र रहा हूँ उसी डगर से ।।

नशे का आलम न पूछ मुझसे ।

मैं पी रहा  हूँ तेरी  नज़र  से ।।

हयात मेरी भी कर दे रोशन ।

ये इल्तिज़ा है मेरी क़मर से ।।

हजार पलके बिछी हुई हैं ।

गुज़र रहे हैं वो रहगुजर से ।।

खफा हैं वो मुफलिसी से मेरी ।

जो तौलते थे मुझे गुहर से ।।

यूँ तोड़कर तुम वफ़ा के वादे ।

निकल रहे हो मिरे शहर से ।।

उन्हें पता हैं मेरी खताएँ ।

वे राज लेते हैं मोतबर से ।।

न कर तू साजिश न काट उसको ।

मिलेगा साया उसी शजर से ।।

हैं आसुओं को छुपाना मुश्किल ।

निकल पड़े हैं जो चश्मे तर से ।।

बड़ी उम्मीदें थीं आज उससे ।

मिला कहाँ वो  मुझे जिगर   से ।।

--नवीन मणि त्रिपाठी मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Kalipad Prasad Mandal on December 23, 2017 at 7:56pm

आ नवीन मणि जी बहुत सुन्दर ग़ज़ल का प्रयास हुआ है \गुणी जनो की बात का सज्ञान ले सकते हैं हार्दिक बधाई स्वीकार  करें |

Comment by Neelam Upadhyaya on December 22, 2017 at 5:02pm

बहुत ही बढ़िया गजल । बधाई ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on December 21, 2017 at 5:52pm

आ0 श्याम नारायण वर्मा जी आभार

Comment by Naveen Mani Tripathi on December 21, 2017 at 5:51pm

आ0 कल्पना जी सादर नमन 

Comment by Naveen Mani Tripathi on December 21, 2017 at 5:50pm

आ0 कबीर सर सादर नमन । 

Comment by Naveen Mani Tripathi on December 21, 2017 at 5:49pm

आ0 मनोज कुमार साहब सप्रेम आभार ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on December 21, 2017 at 5:49pm

भाई अजय तिवारी जी मजा आ गया आपकी इस्लाह से जरूर  मानने योग्य है । सप्रेम आभार ।

Comment by Manoj kumar shrivastava on December 21, 2017 at 3:39pm

गम्भीर भावों को आत्मसात किये, इस रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय त्रिपाठी जी।

Comment by Shyam Narain Verma on December 21, 2017 at 3:22pm
बहुत खूब ! इस सुंदर गजल हेतु बधाई स्वीकारें ।
Comment by Samar kabeer on December 21, 2017 at 3:18pm

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है,बधाई स्वीकार करें ।

गुणीजनों की बातों का संज्ञान लें ।

छटे शैर के सानी मिसरे में 'शहर' की जगह "नगर" करना उचित होगा क्योंकि सही शब्द है "शह्र"और इसका वज़्न 21 होता है ।

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