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जुल्फ लहरा के बिखर जाती है

2122 1122 22
जब कभी छत पे नज़र जाती है ।
उनकी सूरत भी निखर जाती है ।।

पा के महबूब के आने की खबर।
वो करीने से सँवर जाती है ।।

कोई उल्फत की हवा है शायद ।
ज़ुल्फ़ लहरा के बिखर जाती है ।।

इक मुहब्बत का इरादा लेकर ।
रोज साहिल पे लहर जाती है ।।

बेसबब इश्क हुआ क्या उस से ।
वो तसव्वुर में ठहर जाती है ।।

अब न चर्चा हो तेरी महफ़िल में ।
चोट फिर से वो उभर जाती है ।।

हिज्र की बात करूँ क्या उससे ।
बात सुनकर वो सिहर जाती है ।।

याद क़ातिल की तरह चुपके से ।
दिल मे हौले से उतर जाती है ।।

रोज मजबूरियों की दहशत में ।
जिंदगी पर भी क़तर जाती है ।

गर खुदा की है इनायत तुझ पे ।
मौत छूकर भी गुज़र जाती है ।।

-नवीन मणि त्रिपाठी मौलिक अ प्रकाशित

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 24, 2017 at 9:57am

आ. भाई नवीन जी, सुंदर गजल हुई है । हार्दिक बधाई।

Comment by Kalipad Prasad Mandal on December 23, 2017 at 8:03pm

आ नवीन् मणि जी बहुत बेहतरीन ग़ज़ल हुई है | बधाई स्वीकार करें |

Comment by Naveen Mani Tripathi on December 23, 2017 at 12:01pm

आ0 मु0 आरिफ साहब तहे दिल से शुक्रिया

Comment by Naveen Mani Tripathi on December 23, 2017 at 12:00pm

आ0 राम अवध विश्वकर्मा साहब तहे दिल से शुक्रिया

Comment by Mohammed Arif on December 21, 2017 at 11:11pm

कोई उल्फत की हवा है शायद ।
ज़ुल्फ़ लहरा के बिखर जाती है । वाह! वाह!! बहुत ही रोमाण्टिक ख़्याल है ।

शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद कुबूल कीजिए आदरणीय नवीनमणि त्रिपाठी जी ।

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on December 21, 2017 at 9:30pm

आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी खूबसूरत ग़ज़ल पर हार्दिक बधाई।

Comment by Naveen Mani Tripathi on December 21, 2017 at 8:59pm

आ0 लक्ष्मण धामी मुसाफ़िर साहब हार्दिक आभार ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on December 21, 2017 at 8:58pm

आ0 श्याम नारायण वर्मा साहब हार्दिक आभार ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on December 21, 2017 at 8:57pm

आ0 गुरुदेव कबीर सर तहे दिल से शुक्रिया के साथ सादर नमन । 

Comment by Samar kabeer on December 21, 2017 at 3:28pm

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है,बधाई स्वीकार करें ।

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