For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

212 1222 212 1222
इस तरह मुहब्बत में दिल लुटा के चलते हो ।
हर कली की खुशबू पर बेसबब मचलते हो ।।

मैंकदा है वो चहरा रिन्द भी नशे में हैं ।
बेहिसाब पीकर तुम रात भर सँभलते हो ।।

टूट कर मैं बिखरा हूँ अपने आशियाने में ।
क्या गिला है अब मुझसे रंग क्यूँ बदलते हो ।।

दिल चुरा लिया तुमने हुस्न की नुमाइस में ।
बेनकाब होकर क्यूँ घर से तुम निकलते हो ।।

तिश्नगी जलाती है जब भी तुमको देखा है ।
तुम बड़े सलीके से रूह को भी छलते हो ।।

मिल गया तुम्हारा खत पढ़ लिया फ़साना भी ।
बेरुखी का आलम है आग में ही ढलते हो ।।

कुछ ग़ज़ल का जादू है कुछ अदा भी कमसिन है ।
इश्क़ में सवँरते हो आशिकी में पलते हो ।।

आसुओं का रिश्ता है अब किसी मुहब्बत से ।
जानकर हकीकत सब दिल से क्यों न मिलते हो ।

इस तरह जवानी पर नाज़ क्या करोगे तुम ।
तुमतो उसकी सूरत पे मोम सा पिघलते हो ।।

तुम छुपा नहीं पाए दर्द वो जुदाई का ।
आंख सब बताती है किस तरह टहलते हो ।।

,---नवीन मणि त्रिपाठी

मौलिक अप्रकाशित

Views: 468

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Naveen Mani Tripathi on December 24, 2017 at 2:55pm

जी सर उसे भी देखता हूँ । सादर आभार ।

Comment by Samar kabeer on December 24, 2017 at 2:46pm

जनाब नवीन जी क़वाफ़ी अब ठीक हैं ।

5वें शैर में शुतरगुर्बा दोष है,ऊला में 'तुझको' और सानी में ' 'तुम' ।

छटे के सानी में ऐब-ए-तनाफ़ुर 'आलम में' ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on December 24, 2017 at 2:32pm

आ0 काली पद प्रसाद मण्डल साहब ग़ज़ल में परिवर्तन किया है एक बार पुनः देखने का कष्ट करें ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on December 24, 2017 at 2:30pm

आ0 कबीर सर सादर नमन - ग़ज़ल की काफिया के साथ साथ कुछ अन्य परिवर्तन कर एडिट कर दिया है । अब एक बार पुनः अवलोकन करने की कृपा करें । सादर ।

Comment by Kalipad Prasad Mandal on December 23, 2017 at 7:44pm

आदरणीय  नवीन मणि जी , ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा हुआ है | आ समीर कबीर साहिब की बात से मैं  सहमत हूँ | पांचवां शेर में ऐब ए शुतुर्गुर्बा दोष भी  प्रतीत हो रहा | क्रपया देख ले | सादर नमन 

Comment by Naveen Mani Tripathi on December 22, 2017 at 11:14pm

आ0 कबीर सर नमन इससे बचने के लिए मैंने मतले के शेर में सस्ते किया था । मतले के शेर में कुछ परिवर्तन कर दिया जाए तो क्या काफिया मान्य हो जाएंगे ।

Comment by Shyam Narain Verma on December 21, 2017 at 3:33pm
सुन्दर भावों से सजी इस गज़ल के लिए आपको बहुत बधाई।
Comment by Samar kabeer on December 21, 2017 at 3:08pm

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,पूरी ग़ज़ल में क़वाफ़ी सही नहीं हैं,'चलते' के साथ 'जलते',सँभलते',,'पिघलते' क़वाफ़ी आएंगे क्योंकि आपका क़ाफ़िया 'ते' है और इसका हर्फ़-ए-रवी है 'ल',हर्फ़-ए- रवी कहते हैं,क़ाफिये के पहले बार बार आने वाला हर्फ़(अक्षर)ग़ौर कीजियेगा ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 21, 2017 at 12:37pm

हार्दिक बधाई

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on December 20, 2017 at 6:39pm

बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आपने आदरणीय| हार्दिक बधाई|

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सादर प्रणाम, आदरणीय ।"
2 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सुन, ससुराल में किसी से दब के रहने की कोई ज़रूरत नहीं है। अरे भाई, हमने कोई फ्री में सादी थोड़ी की…"
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar shared their blog post on Facebook
8 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"स्वागतम"
20 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र जी, हृदय से आभारी हूं आपकी भावना के प्रति। बस एक छोटा सा प्रयास भर है शेर के कुछ…"
21 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"इस कठिन ज़मीन पर अच्छे अशआर निकाले सर आपने। मैं तो केवल चार शेर ही कह पाया हूँ अब तक। पर मश्क़ अच्छी…"
21 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र ji कृपया देखिएगा सादर  मिटेगा जुदाई का डर धीरे धीरे मुहब्बत का होगा असर धीरे…"
22 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"चेतन प्रकाश जी, हृदय से आभारी हूं।  साप्ताहिक हिंदुस्तान में कोई और तिलक राज कपूर रहे होंगे।…"
22 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"धन्यवाद आदरणीय धामी जी। इस शेर में एक अन्य संदेश भी छुपा हुआ पाएंगे सांसारिकता से बाहर निकलने…"
22 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय,  विद्यार्जन करते समय, "साप्ताहिक हिन्दुस्तान" नामक पत्रिका मैं आपकी कई ग़ज़ल…"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"वज़न घट रहा है, मज़ा आ रहा है कतर ले मगर पर कतर धीरे धीरे। आ. भाई तिलकराज जी, बेहतरीन गजल हुई है।…"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
23 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service