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अधूरी जिंदगी(लघु कथा)

कुछ लोग दार जी के पास चुपचाप बैठे,अफ़सोस जता रहे थे। छोटी बहू हर आने वाले को चाय पानी प्रदान कर रही थी। इस मोहल्ले में दार जी ही पुराने रहने वाले हैं,बाकी लोग यहाँ दंगों के बाद आ कर अस्थाई तौर से रह रहे हैं। मगर मानवता के रिश्ते से अब ये लोग यहाँ आ कर बैठे हैं।
"बाऊ जी अब कैसा महसूस कर रहे हो" राम प्रकाश ने पास बैठते हुए कहा।
“किस के बारे”, दार जी ने कहा।
"कल जो डाक्टर साहिब ने बताया कि ब्लड प्रेशर की तकलीफ है आप को”।
भाई राम, भला ये भी कोई तकलीफ होती है, इस उम्र तक तो हम ने़ ऐसी कई………… ।
दार जी, कुछ देर के लिए चुप हो गए और जमीन की तरफ देखने लगे।
फिर बोले में तो नहीं मानता के ये भी कोई तकलीफ है।
डाक्टर कहता है तो उसे ये तकलीफ लगती होगी।
“डाक्टर क्या जाने अकेलेपन में रहने की तकलीफ क्या होती है?", ये कहते हुए दार जी इक बार फिर चुप हो गए।
"दार जी कहते हैं, इस दुनिया से हर किसी ने तो जाना है, आज भाभी नहीं, कल को हम भी नहीं होंगे " , राम प्रकाश ने कहा।
"ऐसा ही तो दुनिया का दस्तूर है,सदियों से ऐसा ही होता रहा है", साथ बैठे जगत ने कहा ।
"आहो भाई, जाना होता है। मगर आदमी कोई चीज़ थोड़़ी है, जो फिर मिल जाएगी, इस के साथ कितने रिशते जुड़े होते हैं, जिंदगी का साथ ही तो जिंदगी होती है, साथी के जाने बाद अकेलेपन में कैसे गुजरेगी कोई मामूली बात थोड़ी है।"
"क्या बताऊं, कह ?", दार जी टिकटिकी लगा आस पास बैठे लोगों की तरफ देखने लगा।

मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by मोहन बेगोवाल on June 6, 2018 at 5:00pm
अधूरापन
दो दिन पहले सरदारनी स्वर्ग सिधार गई, लोग घर में आ जा रहे थे। कुछ लोग दार जी के पास चुपचाप बैठे,अफ़सोस जता रहे थे। छोटी बहू हर आने वाले को चाय पानी प्रदान कर रही थी। इस मोहल्ले में दार जी ही पुराने रहने वाले हैं,बाकी लोग यहाँ दंगों के बाद आ कर अस्थाई तौर से रह रहे हैं। मगर मानवता के रिश्ते से अब ये लोग यहाँ आ कर बैठे हैं।
"बाऊ जी अब कैसा महसूस कर रहे हो" राम प्रकाश ने पास बैठते हुए कहा।
“किस के बारे”, दार जी ने कहा।
"कल जो डाक्टर साहिब ने बताया कि ब्लड प्रेशर की तकलीफ है आप को”।
भाई राम, भला ये भी कोई तकलीफ होती है, इस उम्र तक तो हम ने़ ऐसी कई………… ।
दार जी, कुछ देर के लिए चुप हो गए और जमीन की तरफ देखने लगे।
फिर बोले में तो नहीं मानता के ये भी कोई तकलीफ है।
डाक्टर कहता है तो उसे ये तकलीफ लगती होगी।
“डाक्टर क्या जाने अकेलेपन में रहने की तकलीफ क्या होती है?", ये कहते हुए दार जी इक बार फिर चुप हो गए।
"दार जी कहते हैं, इस दुनिया से हर किसी ने तो जाना है, आज भाभी नहीं, कल को हम भी नहीं होंगे " , राम प्रकाश ने कहा।
"ऐसा ही तो दुनिया का दस्तूर है,सदियों से ऐसा ही होता रहा है", साथ बैठे जगत ने कहा ।
"आहो भाई, जाना होता है। मगर आदमी कोई चीज़ थोड़़ी है, जो फिर मिल जाएगी, इस के साथ कितने रिशते जुड़े होते हैं, जिंदगी का साथ ही तो जिंदगी होती है, साथी के जाने बाद अकेलेपन में कैसे गुजरेगी कोई मामूली बात थोड़ी है।"
"क्या बताऊं, कह ?", दार जी टिकटिकी लगा आस पास बैठे लोगों की तरफ देखने लगा।
Comment by Mahendra Kumar on June 6, 2018 at 10:22am

आदरणीय मोहन बेगोवाल जी, इस संवेदनशील लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. एक सुझाव है कि यदि आप इसमें इस बात को उभार सकें कि किसके जाने से दार जी की ज़िन्दगी अधूरी हो गयी और वह अकेलापन महसूस करने लगे तो यह और बेहतर लघुकथा हो जाएगी. सादर.

Comment by Mohan Begowal on June 3, 2018 at 4:03pm

आदरणीय आरिफ़ जी,आप जी की तरफ की गई तनकीद के लिए, बहुत शुक्रिया।

Comment by Mohammed Arif on June 3, 2018 at 1:54pm

आदरणीय मोहन बेगोवाल जी आदाब,

                                    (1)  ज़िंदगी में पाकर खोने या टूटने-बिखरने की पृष्ठभूमि की औसत दर्जे की लघुकथा ।

                                     (2) पात्रानुकूल संवाद ।

                                      (3) कमज़ोर विराम चिन्हों का प्रयोग या सही विराम चिन्हों का प्रयोग ।

                                       (4) कुछ वर्तनीगत अशुद्धियाँ

                                         (5) जीवन दर्शन का आईना दिखाती लघुकथा ।

                                          (6) थोड़ा कमज़ोर शिल्प ।

                                                                हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

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