For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

उम्मीदों की मशाल [लघु कथा ]

रामू की माँ तो अपने पति के शव पर पछाड़ खाकर गिरी जा रही थी.रामू कभी अपने छोटे भाई बहिन को संभाल रहा था ,तो कभी अपनी माँ को.अचानक पिता के चले जाने से उसके कंधों पर जिम्मेदारियों का बोझ आ पड़ा था.

पढ़ाई छोड़,घर में चूल्हा जलाने के वास्ते रामू काम की तलाश में सड़को की छान मारता।अंततःउसने घर-घर जाकर रद्दी बेचने का काम पकड़ लिया।रद्दी में मिलती किताबों को देख उसके अंदर का किताबी कीड़ा जाग उठा.किताबे बचाकर,बाकी रद्दी बेच देता।और रात में लालटेन में अपने पढ़ने की भूख को  तृप्त करता।

समय बीतता गया,माँ सिलाई करती,और भाई-बहिन को अच्छे स्कूल में दाखिला दिला दिया।उसने भी एक छोटी सी किराए पर दुकान ले ली.उसमे रद्दी के साथ पुरानी किताबो की भी विक्री करता.लेकिन एक बात हरदम दिमाग में घुमड़ती रहती,काश,कभी तो मेरी लिखी किताब इसी तरह विकेगी....

लेकिन बुरा वक्त कहकर नहीं आता.अकस्मात माँ के देहावसान ने उसे तोड़ कर रख दिया,लेकिन बचपन से मिले संघर्ष ने उसे सकारात्मक नजरिये से गिरकर,फिर से उठने की हिम्मत दी.लेकिन अकेले में वो अपने आप से पूछता- 'आखिर जिंदगी हैं क्या?सब कुछ जमने को होता हैं,फिर सब तहस-नहस हो जाता हैं.'

लेकिन ऐसे समय,किताबों में पढ़े वाक्यों को वो अपनी जिंदगी में आत्मसात करता,जो उसे हिम्मत देते थे.

एक दिन छोटे भाई बहिन को झगड़े को वो ऐसे समझा रहा था कि,मुन्नी बोल पड़ी- भैया ,आप इतनी अच्छी बाते करते हो,कौन सिखाता हैं, आपको?

रामू उसके सिर पर प्यार हाथ फेरते हुए ,खोया हुआ सा कहता हैं- 'वक्त इन्सान को सब सीखा देता हैं.'

पीछे से चीकू बोलता हैं- 'भैया आप ढेरों किताबे पढ़ते हो,आप अपनी किताब क्यों नहीं लिखते?'

हाँ में हाँ मिलाते हुए मुन्नी भी कहती हैं- आप भी लिखों ना.'

रामू  ने चीकू मुन्नी से तो उनकी हाँ में हाँ मिला दी पर ,जैसे उसके अंदर के दबे विचारों को कौंधा दिया हो,सपने को पूरा करने का रास्ता दिखा दिया हो.

दिन तो रोजी रोटी में चला जाता और रात में पन्नों पर अपनी जीवन गाथा में संघर्ष और उसके उत्थान को रचता.लम्बे अंतराल व जद्दोजहद के ततपश्चात किताब प्रकाशित हुई.कहते हैं ना वक्त बड़ा बलवान होता हैं,मेहनत कभी निरर्थक नहीं जाती,और जल्द ही किताब ने सबके दिलों पर राज कर लिया. आज उसकी किताब जीविकोपार्जन का साधन बनी,जिनका वास्ता वक्त की मार ने छुड़वा दिया था.

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 631

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 3, 2018 at 1:28am

'लघु कथा' नहीं लिखिए, बल्कि सही मान्य विधा-नाम 'लघुकथा' लिखियेगा। सादर

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 3, 2018 at 1:24am

बढ़िया शीर्षक के साथ बहुत बढ़िया कथानक पर बढ़िया प्रयास के लिए हार्दिक बधाइयाँ आदरणीया बबीता गुप्ता जी। दो जगह कालखंड दोष समझ आ रहा है। कृपया आदरणीय तेजवीर सिंह जी की इस्लाह (सुझावों) पर ग़ौर फ़रमाकर इसमें से किसी एक विसंगति पर फ्लैशबैक तकनीक का उपयोग कर पुनः लघुकथा प्रयास कीजिएगा। सादर

Comment by Samar kabeer on August 2, 2018 at 6:29pm

मुहरमा बबीता गुप्ता जी आदाब,जनाब तेजवीत जी की बातों का संज्ञान लें ।

Comment by TEJ VEER SINGH on August 2, 2018 at 4:28pm

हार्दिक बधाई आदरणीय बबिता गुप्ता जी।आपका प्रयास सराहनीय है।मेरे विचार से यह लघुकथा का विषय नहीं लगता।इस पर आप एक सुंदर सी कहानी लिख सकते हो।क्योंकि इसमें आपने कई सारी घटनायें समाहित कर दीं।पिता की मृत्यु, माँ की मृत्यु फिर पुस्तक का प्रकाशन। लघुकथा केवल एक घटना का विशिष्ट सूक्ष्म विवरण दर्शाती है।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post भादों की बारिश
"यह लघु कविता नहींहै। हाँ, क्षणिका हो सकती थी, जो नहीं हो पाई !"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

भादों की बारिश

भादों की बारिश(लघु कविता)***************लाँघ कर पर्वतमालाएं पार करसागर की सर्पीली लहरेंमैदानों में…See More
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान ।मुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।। छोटी-छोटी बात पर, होने लगे…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय चेतन प्रकाश भाई ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक …"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सुशील भाई  गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिए आपका आभार "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"विगत दो माह से डबलिन में हूं जहां समय साढ़े चार घंटा पीछे है। अन्यत्र व्यस्तताओं के कारण अभी अभी…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"प्रयास  अच्छा रहा, और बेहतर हो सकता था, ऐसा आदरणीय श्री तिलक  राज कपूर साहब  बता ही…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छा  प्रयास रहा आप का किन्तु कपूर साहब के विस्तृत इस्लाह के बाद  कुछ  कहने योग्य…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सराहनीय प्रयास रहा आपका, मुझे ग़ज़ल अच्छी लगी, स्वाभाविक है, कपूर साहब की इस्लाह के बाद  और…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आपका धन्यवाद,  आदरणीय भाई लक्ष्मण धानी मुसाफिर साहब  !"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"साधुवाद,  आपको सु श्री रिचा यादव जी !"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service