नन्ही सी चीटी हाथी की ले सकती जान है
कोरोना ने कराया हमें इसका भान है।
हाथों को जोड़ कहता सफाई की बात वो
पर तुमको गंदगी में दिखी अपनी शान है।
बातें अगर गलत हों तो वाजिव विरोध है
सच का भी जो विरोध करे बदजुबान है।
नक़्शे कदम पे तेरे क्यूँ सारा जहाँ चले
बातों में बस तुम्हारी ही क्या गीता ज्ञान है
कोरोना की ही शक्ल में नफरत है चीन की
जिसके लिए जमीन ही सारी जहान है
मालिक के दर पे सज्दा वजू करके ही करूं
संदेश कितना दिलकश देती कुरआन है
मालिक के दर पे आशू चलो मांग लें दुआ
जल्दी चलो हरम में शुरू फिर अजान है
मौलिक व् अप्रकाशित
Comment
आदरणीय डॉ आशुतोष मिश्रा जी, आपको इस ग़ज़ल पर हार्दिक बधाई। आदरणीय उस्ताद-ए-मुहतरम की बातों का संज्ञान लीजिये। अगर आप नज़्म कहें तो उसमें अनेक प्रकार की छूट है, लेकिन ग़ज़ल में नियम बहुत ही कड़े हैं, अलफ़ाज़ के वज़न को लेकर। दूसरी बात ये कहना चाहूँगा आदरणीय, कि आप नुक़्ते और बिंदी का इस्तेमाल सहीह नहीं करते हैं, और इस वजह से ग़ज़ल में कई spelling mistakes हैं... अगर आप कभी किताब छपवाएँगे तो ये सारी ग़लतियाँ यूँ ही छप जाएँगी, और शाइरी चाहे कितनी भी अच्छी हो, टंकण की त्रुटियाँ शाइर की image ख़राब कर देती हैं। कृपया इन अलफ़ाज़ पे ग़ौर कीजिये:
चींटी
सफ़ाई
ग़लत
बद-ज़ुबान
नक़्श-ए-क़दम
नफ़रत
ज़मीन
वुज़ूअ
करूँ
माँग
अज़ान
अगर आप को किसी लफ्ज़ के spelling में संदेह हो तो rekhta.org या और online resources से देखकर ध्यान से spelling लिखें। मैं ये बातें आपको इसलिए बता रहा हूँ क्यूँकि मुझे ये स्कूल में या कॉलेज में किसी ने नहीं बताई थीं। फिर जब उर्दू सीखी और उस्ताद-ए-मुहतरम समर कबीर साहिब की शागिर्दी ली तो ये सब समझ में आना शुरूअ' हुआ। उस्ताद-ए-मुहतरम समर कबीर साहिब का कहना है कि "आपके लिखे में एक बिंदी की भी ग़लती नहीं होनी चाहिए", इसलिए कृपया इसे ध्यान से समझें। देखिये नुक़्ते से हर्फ़ की आवाज़ कैसे बदल जाती है:
क = कौन
क़ = क़ौम (guttural sound, produced in the back of the throat)
ख = खाना
ख़ = ख़ाना (जैसे कि 'मैख़ाना', guttural sound, produced in the back of the throat)
ग = गाल
ग़ = ग़ालिब (guttural sound, produced in the back of the throat)
फ = फूल ('ph' sound)
फ़ = फ़ायदा ('f' sound)
ज = जग ('j' sound)
ज़ = ज़हर ('z' sound)
आशा करता हूँ मैं आपको कुछ लाभ पहुंचा सका। आपके लिए ढेरों शुभ कामनाएँ।
'क़ुरआन' को 'कुरान' नहीं लिख सकते ।
'जल्दी चलो हरम में हुयी फिर अजान है'
ये मिसरा ठीक है ।
आदरणीय समर सर ।आपके मश्विरे का ह्रदय से आभारी हूँ। सर कुर आन को कुरान लिख सकते हैं की नहीं। बह्र लिखना भूल गया था ।
221 2121 1221 212 है । लास्ट में कुरआन को कुरान है हो सकता है या नहीं । 1212 कुरान है।मार्गदर्शन कीजियेगा। इस शेर को ठीक करता हूँ
सर जल्दी चलो हरम में हुयी फिर अजान है ।।किया जा सकता है क्या
जनाब डॉ. आशुतोष मिश्रा जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
ग़ज़ल के साथ अरकान भी लिख दिया करें,इससे नए सीखने वालों को आसानी होती है ।
'संदेश कितना दिलकश देती कुरआन है'
ये मिसरा बह्र में नहीं है,दूसरी बात 'क़ुरआन' का वज़ 221 और ये शब्द पुल्लिंग है ।
'जल्दी चलो हरम में शुरू फिर अजान है'
इस मिसरे में 'शुरू' शब्द ग़लत है,सहीह शब्द है "शुरू'अ'' है और इसका वज़्न 121 है,देखियेगा ।
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