For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हिन्दी सी भला मिठास कहाँ?

कोई भी भाषा हो , लेकिन

हिन्दी सी भला मिठास कहाँ ?

जो दिल से भाव निकलते हैं

वह कोमल सा अहसास कहाँ ?

है नर्तन मधुर तरंगों सा

अपना ' प्रणाम ' अन्यान्य कहाँ ?

जिससे झंकृत हृद - तार मृदुल

वह सुन्दरता , उल्लास कहाँ

जब बच्चा ' अम्मा , कहकर के

जा , माँ के गले लिपटता है

इस नैसर्गिक उद्बोधन में

अद्भुत आनन्द , हुलास कहाँ ?

कोई भी भाषा हो , लेकिन

हिन्दी सी भला मिठास कहाँ ?

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 689

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Usha Awasthi on April 24, 2020 at 12:03am

माफ करें , आपकी इस टिप्पणी को मैं देख नहीं पाई थी ।

हार्दिक धन्यवाद आपको

Comment by Samar kabeer on March 28, 2020 at 10:52pm

जी,आपसे सहमत हूँ,मैं भी इस समस्या से बहुत दुखी हूँ ।

Comment by Usha Awasthi on March 28, 2020 at 10:43pm

आदाब,मेरा इशारा देश की किसी भाषा की ओर नहीं है ।अग्रेंजी भाषा का प्रसार जिस तरह हमारे देश में बढ़ा है ,देश में बोली जाने वाली सभी भाषाओं पर खतरा मंडरा रहा है।निश्चय ही इसका प्रमुख कारण रोजगार है।अन्य कारण भी हैं।हमारे बहुत से बच्चे अपनी मातृ भाषा ही भूलते जा रहे हैं।जो बात अस्पष्ट रह गई थी,उसओर ध्यान दिलाने हेतु धन्यवाद।

Comment by Samar kabeer on March 28, 2020 at 8:01pm

मुहतरमा ऊषा अवस्थी जी आदाब,हिन्दी भाषा के प्रति आपकी कविता अच्छी है,मुझे तो हमारे देश में बोली जाने वाली हर भाषा बहुत मीठी लगती है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Usha Awasthi on March 28, 2020 at 2:22pm

किसी भी भाषा को सीखना बुरा नहीं है।किन्तु अपने ही देशवासियों का हिन्दी को छोड़ अन्य भाषा के प्रति अत्यधिक लगाव देख कर कष्ट होता है। निश्चित ही इसके कुछ कारण अवश्य हैं , जिन्हे दूर किया जाना चाहिए।

  • किन्तु इतनी खूबसूरती से भावो को व्यक्त करने वाली अपनी भाषा की अवहेलना असहनीय है।  हार्दिक आभार आपका

Comment by Dr. Geeta Chaudhary on March 28, 2020 at 1:29pm

आदरणीय उषा मैडम, अदभुत मीठें शब्दों  में हिंदी की मिठास को व्य करती कविता, बहुत अच्छी लगी। हार्दिक बधाई आपको।

Comment by Usha Awasthi on March 27, 2020 at 5:38pm

हार्दिक आभार आपका । वाक्य के अन्तिम शब्दों 'भाषा शैली . . ' समझ नहीं पा रही हूँ। धन्यवाद।

Comment by दिनेश कुमार शुक्ल on March 27, 2020 at 2:27pm
हिन्दी जैसी मिठास कहाँ जहाँ मिठास होती है वही प्रकृति होती है जहाँ ये दोनो हो वहां रस, छन्द एवं अलंकरण स्वयं भाषा शैली प्रस्तुत हो है
Comment by Usha Awasthi on March 27, 2020 at 1:55pm

इस खूबसूरत टिप्पणी के लिए धन्यवाद

Comment by Khan Hasnain Aaqib on March 27, 2020 at 1:23pm
बहोत खूब उषा जी.. हिंदी सी मिठास कहाँ..
पूरी कविता एहसास को अधोरेखित करती है

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हमको न/गर में गाँव/ खुला याद/ आ गयामानो स्व/यं का भूला/ पता याद/आ गया। आप शायद स्व का वज़्न 2 ले…"
1 hour ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"बहुत शुक्रिया आदरणीय। देखता हूँ क्या बेहतर कर सकता हूँ। आपका बहुत-बहुत आभार।"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय,  श्रद्धेय तिलक राज कपूर साहब, क्षमा करें किन्तु, " मानो स्वयं का भूला पता…"
2 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"समॉं शब्द प्रयोग ठीक नहीं है। "
2 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हर सिम्त वो है फैला हुआ याद आ गया  ज़ाहिद को मयकदे में ख़ुदा याद आ गया यह शेर पाप का स्थान माने…"
2 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"तन्हाइयों में रंग-ए-हिना याद आ गया आना था याद क्या मुझे क्या याद आ गया लाजवाब शेर हुआ। गुज़रा हूँ…"
3 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शानदार शेर हुए। बस दो शेर पर कुछ कहने लायक दिखने से अपने विचार रख रहा हूँ। जो दे गया है मुझको दग़ा…"
4 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मिसरा दिया जा चुका है। इस कारण तरही मिसरा बाद में बदला गया था। स्वाभाविक है कि यह बात बहुत से…"
4 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"खुशबू सी उसकी लाई हवा याद आ गया, बन के वो शख़्स बाद-ए-सबा याद आ गया। अच्छा शेर हुआ। वो शोख़ सी…"
4 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हमको नगर में गाँव खुला याद आ गया मानो स्वयं का भूला पता याद आ गया।१। अच्छा शेर हुआ। तम से घिरे थे…"
4 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"किस को बताऊँ दोस्त  मैं क्या याद आ गया ये   ज़िन्दगी  फ़ज़ूल …"
5 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"जी ज़रूर धन्यवाद! क़स्बा ए शाम ए धुँध को  "क़स्बा ए सुब्ह ए धुँध" कर लूँ तो कैसा हो…"
5 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service