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विरोध पर पञ्चचामर छंद में रचना

पञ्चचामर छंद

सूत्र : जगण + रगण + जगण + रगण + गुरु

शरीर लोकतन्त्र तो विरोध एक वस्त्र है
विरोध एक नाम है विरोध अस्त्र शस्त्र है
न अंधकार हो कहीं विरोध वो मशाल है
विरोध एक आग है विरोध क्रांति भाल है।।1

विरोध कीजिए भले, विकास को न रोकिये
विपक्ष पक्ष साथ हो, तुरन्त आप टोकिये
कभी विरोध नाम से यहाँ न तोड़ फोड़ हो
विरोध हो विरोध सा, विरोध में न होड़ हो।।2

अनीति या कुरीति का सदा विरोध कीजिए
भविष्य खोखला न हो तदर्थ शोध कीजिए
घमण्ड लोभ भोग काम और क्रोध त्यागिये
मशाल ज्ञान की जला विनाश बोध त्यागिये।।3

विरोध के लिए सदैव तथ्य का प्रमाण हो
विदेश में रचा गया प्रपंच का न बाण हो
विचार प्रौढ़ हो सदा स्वतन्त्र एक भाव हो
विरोध भी स्वतन्त्र हो! न बाहरी दबाव हो।।4

विरोध का न धर्म हो दिखे नहीं मलीनता
अतीत दर्प हो यहाँ रचें सदा नवीनता
कि स्वस्थ लोकतंत्र में सहिष्णुता पुकारती
विरोध में छिपी रहे समाज की सलामती।।5

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 448

Comment

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Comment by नाथ सोनांचली on April 28, 2020 at 7:11am

आद0 लक्ष्मण धामी जी सादर अभिवादन।  रचना पर आपकी उपस्थिति और प्रतिक्रिया के लिए आभार

Comment by नाथ सोनांचली on April 28, 2020 at 7:10am

आद0 अवनीश जी आभार

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 26, 2020 at 10:30am

आ. भाई सुरेन्द्र नाथ जी, सादर अभिवादन । पञ्चचामर छंद में उत्तम समसामयिक व प्रेरणाप्रद रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Awanish Dhar Dvivedi on April 26, 2020 at 1:22am

सुन्दर रचना।

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