मत्त गयंद छंद
हाथ रखा जिसने सिर पे वह जीवन सम्बल शक्ति पिता है
प्रेम प्रशासन औ अनुशासन प्यार दुलार विभक्ति पिता है
रीढ़ झुकी उसके तन की पर वज्र दधीचि प्रसक्ति पिता है
तीर्थ बसें जग के जिसमें सब पूजित वो इक व्यक्ति पिता है।।1
खार बिछावन हो अपना सुत सेज रखे पर फूल पिता है
पुत्र हजार करे गलती पर माफ़ करे सब भूल पिता है
होकर आज बड़ा सुत जो कुछ है उसका सब मूल पिता है
पूत कपूत सपूत बने, बनता न कभी प्रतिकूल पिता है।।2
शौक सभी वह मौज सभी हर बालक का अभिमान पिता है
छाँव तले जिसके पलता घर वो वट वृक्ष समान पिता है
नाम भले सुत का कुछ हो, जग में सुत की पहचान पिता है
रक्षक शिक्षक पोषक तोषक वस्त्र गृहस्थ मकान पिता है।।3
मूक अगाध अनन्त यहाँ दृढ़ पर्वत सा अगहार पिता है
ईश्वर का सब रूप समाहित जीवन का सब सार पिता है
बात कठोर लगे उसकी पर उत्तम भाव विचार पिता है
दोस्त भले शत हों जग में पर निश्छल केवल यार पिता है।।4
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
अप्रतिम
आद0 दण्ड पानी जी सादर अभिवादन। आभार आपका।
आद0 तेजवीर सिंह जी सादर अभिवादन। रचना पर आपकी उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए सादर आभार।
आद0 लक्ष्मण धामी जी सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति सुर प्रतिक्रिया के लिए आभार आपजे। सादर
हार्दिक बधाई आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी। बेहतरीन छंद।
शौक सभी वह मौज सभी हर बालक का अभिमान पिता है
छाँव तले जिसके पलता घर वो वट वृक्ष समान पिता है
नाम भले सुत का कुछ हो, जग में सुत की पहचान पिता है
रक्षक शिक्षक पोषक तोषक वस्त्र गृहस्थ मकान पिता है।।3
आ. भाई सुरेंद्र नाथ जी, सादर अभिवादन । बेहतरीन रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।
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