सम्मान हम किसी का करें कुछ बुरा नहीं
पर आदमी को आदमी समझें, ख़ुदा नहीं।।1
ये सोच कर ही ख़ुद को तसल्ली दिया करें
दुनिया में ऐसा कौन है जो ग़म ज़दा नहीं।।2
बस मौत ही तो आख़री मंज़िल है दोस्तो
इससे बड़ा जहान में सच दूसरा नहीं।।3
हमको तमाम उम्र यही इक़ गिला रहा
चाहा था हमने जिसको हमें वो मिला नहीं।।4
इसको सुनो दिमाग़ से तब आएगा मज़ा
ये शाइरी है यार कोई चुटकुला नहीं।।5
लेती है हर क़दम पे नया इम्तिहान ये
इस ज़िन्दगी से बढ़ के कोई भी सज़ा नहीं।।6
लिखते हो कुछ न कुछ तो यहाँ रोज़ 'नाथ' तुम
दुनिया को याद रह सके ऐसा लिखा नहीं।।7
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आद0 समर कबीर साहब सादर प्रणाम। ग़ज़ल पर आप आये यह मेरे लिए एक पुरस्कार है। बहुत बहुत आभार आपका। सादर
आद0 तेजवीर सिंह जी सादर अभिवादन।ग़ज़ल पर दाद और उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद निवेदित करता हूँ।
आद0 Manoj kumar Ahsaas जी सादर अभिवादन। क्या आपकी प्रतिक्रिया अरकान तक ही सीमित है? सादर
आद0 रवि भसीन शाहिद जी सादर अभिवादन। ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और मनोहारी प्रतिक्रिया का हृदयतल से स्वागत अभिनन्दन
जनाब सुरेन्द्र नाथ सिंह जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल कही आपने,बधाई स्वीकार करें ।
हार्दिक बधाई आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी। बहुत शानदार गज़ल।
लेती है हर क़दम पे नया इम्तिहान ये
इस ज़िन्दगी से बढ़ के कोई भी सज़ा नहीं।।
प्रिय मित्र आपने इस ग़ज़ल पर इसके अरकान नहीं लिखे हैं कृपया ग्रुप में जो भी गजल डालें उस पर उस के अरकान जरूर लिखे
आदरणीय सुरेन्द्र भाई, बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है, आपको ढेरों बधाई! ख़ास तौर पे मतला को कमाल है!
आद0 लक्ष्मण धामी मुसाफ़िर जी सादर अभिवादन। ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और बधाई का शुक्रिया। सादर
आ. भाई सुरेंद्र जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
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