For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अपराध बोध - लघुकथा -

अपराध बोध - लघुकथा -

"सपना, यह क्या कर करने जा रही थी?"

रश्मि ने सपना के कमरे का जो द्दृश्य देखा तो चकित हो गयी। सपना पंखे में फंदा डाल कर स्टूल पर चढ़ी हुई थी।रश्मि अगर चंद पल देर से पहुंचती तो अनर्थ हो जाता। रश्मि ने झपट कर सपना को सहारा देकर नीचे उतारा।सपना रोये जा रही थी।

"सपना मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा कि तुम जैसी शिक्षित, सुशील और शांत लड़की ऐसा अविवेक पूर्ण कदम भी उठा सकती है।"

रश्मि ने उसे पानी दिया और उसे गले लगा कर ढांढस बधाने की चेष्टा की।सपना के संयमित होने पर रश्मि ने पुनः उसे पूछा," सपना मैं तुम्हारी सबसे अच्छी दोस्त हूँ।और तुम तो मुझे अपनी बड़ी बहिन की तरह मानती हो। अपना दुख दर्द मुझे नहीं बताओगी?"

"दीदी, मेरे जीवन में अब कुछ बाकी नहीं बचा।"

"आखिर ऐसा हुआ क्या?"

"दीदी गोपाल ने मुझे धोखा दिया।प्यार का नाटक किया और अब अपने गाँव जाकर माँ बाप की पसंद से शादी कर ली।"

"बस इतनी सी बात?  हद कर दी तुमने सपना।"

"दीदी, आपके लिये यह मामूली बात है।पिछले दो साल से हम रिलेशनशिप में थे।हमारे शारीरिक संबंध भी थे। सारे होस्टल को मालूम है।अब मेरा क्या भविष्य है?"

"पगला गयी हो क्या? तुम्हारे विचार सुन कर कोई मानेगा कि तुम एक शिक्षिका हो और स्त्री स्वतंत्रता जैसे विषय पर पी एच डी कर रही हो।"

"लेकिन दीदी क्या आप सामजिक वर्जनाओं और मान्यताओं को नकार सकती हो?"

"वह गोपाल भी तो इसी समाज का हिस्सा है। उसने क्या किया?"

"दीदी वह तो मर्द है।समाज में मर्दों के लिये अलग सोच है।"

"उस सोच को ही बदलने की आवश्यकता है। दोषी तुम नहीं गोपाल है।अपराधी तुम नहीं गोपाल है। उठो और अपनी शिक्षा से  नयी सोच और नयी विचारधारा को जन्म दो।"

मौलिक, अप्रकाशित एवम अप्रसारित

Views: 517

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by TEJ VEER SINGH on June 7, 2020 at 9:05am

हार्दिक आभार आदरणीय डिंपल शर्मा जी।अच्छा विश्लेषण किया आपने लघुकथा का।

Comment by TEJ VEER SINGH on June 7, 2020 at 9:02am

हार्दिक आभार आदरणीय समर कबीर साहब जी।आदब।

Comment by Dimple Sharma on June 6, 2020 at 2:39pm

सत्य है स्त्री और पुरुष दोनों एक ही पलड़े में तूले जाने चाहिए और यह बात पहले स्त्रीयों को ही समझनी होगी ,स्त्रीयाँ स्वयं ही खुद को कम आंकती हैं और फिर अपने स्त्री होने का रोना रोते रहती है! बहुत अच्छी सीख देती समाज को आईना दिखाती खुबसूरत लघुकथा , बधाई आपको आदरणीय ।

Comment by Samar kabeer on June 6, 2020 at 11:44am

जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब, अच्छी लघुकथा लिखी आपने, बधाई स्वीकार करें ।

Comment by TEJ VEER SINGH on June 6, 2020 at 9:07am

हर्दिक आभार आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी।

Comment by नाथ सोनांचली on June 6, 2020 at 4:32am

आद0 तेजवीर सिंह जी सादर अभिवादन। बेहतरीन लघुकथा लिखी आपने। बधाई स्वीकार कीजिये

Comment by TEJ VEER SINGH on June 5, 2020 at 6:35pm

हार्दिक आभार आदरणीय नमिता सुंदर जी।

Comment by namita sunder on June 5, 2020 at 5:36pm

सच है, इसी बोध को बदलने की आवश्यकता है ।जब अपराध नहीं तो बोध क्यों.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service