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आदरणीय सिद्दीकी सर ।बेहतरीन ,मार्मिक, संदेशात्मक लघुकथा के लिए बधाई स्वीकार करें।
सादर आभार, आदरणीय।
बहुत ही बढ़िया कथा । हार्दिक बधाई आदरणीय मुजफ्फर सिद्दीकी जी
बहुत शुक्रिया , ओमप्रकाश जी
शराब और नशीले पदार्थों की लत परिवार को किस मोड़ पर ले आती है इस तथ्य के इर्दगिर्द बुनी गई भावनात्मक रचना . हार्दिक बधाई इस सृजन पर आदरणीय मुज्ज़फर इकबाल सिद्धकी जी! .उस्मानी जी कीबात से सहमत हूँ .शीर्षक पर विचार करियेगा !
जी बिल्कुल , बहुत बहुत आभार।
आदरणीय सिद्दीकी जी,नई पीढ़ी को संदेश भेजती लघुकथा हेतु आपको बढ़ाई।
जी , शुक्रिया।
एक बेहद सार्थक संदेश देती हुई लघुकथा कही है भाई मुज़फ्फ़र इक़बाल सिद्दिक़ी जी. नेगेटिव का आना और नेगेटिव का साफ़ हो जाना - वाह, शब्दों की यह कारीगरी बेहद पसंद आई. इस उत्कृष्ट लघुकथा के लिए मेरी दिली मुबारकबाद स्वीकार करें.
खेत और कब्र
'खेत जुता।बीज पड़े। रात को खेत से रोशनी उठने लगी। मैं दौड़ते हुए वहां पहुंचा।.....' किसान एक ही सांस में बोल गया।
' फिर?' अन्य कृषकों ने सवाल किया।
' फिर क्या,खेत के नजदीक पहुंचकर मैंने देखा कि खेत में ढेर सारी आकृतियां आपस में जोर जोर से बातें कर रही थीं।रोशनी उनके शरीर से ही निकल रही थी।'
' अच्छा....!' ताज्जुब पूर्वक आवाज गूंजी।
' और सुनो।उनमें कोई आकृति कहती कि वह बेकारी का भूत है।उसे असमय दफना दिया गया है।अपनी शेष उम्रभर वह आवाज बुलंद करेगी।' किसान ने कथा आगे बढ़ाई।
' ओ हो .....और!!!' कृषक मंडली के मुंह खुले के खुले रह गए।
' फिर दूसरी आकृति कहने लगी कि वह भ्रष्टाचार जनित है।आदमी आदमी का भाग छीनने झपटने को बुद्धिमत्ता कहने लगा है। मुफ्त की गोली बांटकर मसीहा मलाई खाने लगे हैं। मैं मरना चाहती थी,पर मुझे जिंदा रखा गया। मैं भागकर मुर्दा मंडली में शरीक हुई कि शायद मर सकूं,पर मनुष्यों ने मुझे जिंदा रहने का कोई नुस्खा पिला दिया है। मैं छटपटाती हूं, मर नहीं सकती।' किसान बोलता गया।
' फिर.....?' अचरज भरे सवाल उभरते रहे।
' इसी तरह व्यभिचार,अनाचार आदि की आकृतियां अपने वृतांत सुनातीं,मौन हो जातीं।फिर कोई दूसरी आकृति अपनी व्यथा कथा लेकर खड़ी हो जाती।पर सबकी जड़ में मनुष्य होता।'
' अच्छा! मनुष्य उन सब आकृतियों का जनक ठहराया गया?' मंडली ने प्रश्न उछाला।
' भावनाएं सजीवों में होती हैं।पर बेकारी,भ्रष्टाचार,व्यभिचार आदि का प्रणेता आजकल आदमी ही हो चला है।विवेकशील होना शायद इसकी जड़ में है।' किसान ने मंडली की जिज्ञासा शांत करने की चेष्टा की।
' अरे बाप रे! हम इतने गए गुजरे हो गए हैं।हमारी आदि में तो प्रकाश समाहित था,अभीप्सित भी।' कुछ ज्यादा पढ़े लिखे ग्रामीणों ने जैसे अफसोस जाहिर किया हो।
' अब आगे की भी सुनो,तब पता चले। देखते देखते वहां दो गुट पहुंच गए,हथियारों से लैस।एक कब्र को पाटने की बात करता,दूसरा और खोदने की। लट्ठम - लट्ठा,छुरेबजी आदि के बाद दोनों गुट हवाई फायर करते हुए गायब हो गए।कुछ और लाशें वहां पड़ी लाशों में शामिल हो गईं।उनके नाम,धर्म आदि की पट्टियां हटाकर उन्हें लाश - मंडली में शुमार कर लिया गया।'
' तेरे खेत में कब्र कैसी?तूने अभी इसका जिक्र किया था।' सवाल उभरा।
' अरे, यह सब छोड़ो भी तुमलोग।तब कब्र खेत बनी थी। अब तो खेत ही कब्र हुए जा रहे हैं।' किसान ने भेदभरी दृष्टि मंडली पर डाली। लोग मर्म भांपते हुए अपने अपने घर चले।
" मौलिक व अप्रकाशित"
हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।प्रतीकों के माध्यम से बहुत सुंदर लघुकथा का सृजन किया है। एक बेहतरीन संदेश।
बहुत बढ़िया । प्रतीकों के माध्यम से आज की सच्चाई कहती है लघुकथा ।
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