आज मैले पहिलो चोटी यो ग्रुपमा गज़ल पोस्ट गर्दैछु ! कस्तो लाग्यो प्रतिक्रिया सुझाव सल्लाहको अपेक्षा गर्दछु धन्यवाद !
गज़ल
समयको गतिलाई कछुवाको चाल भन्छौ
भगवान् को सृष्टिलाई हचुवाको चाल भन्छौ
चुपचाप अत्याचार सहेर म कति बसौं
बिरोधमा उत्रिंदा म बझुवाको चाल भन्छौ
असत्यको तिलस्वी त्यो ताज पनि फाली दिएँ
बुद्धि छैन हेर हेर लठुवाको चाल भन्छौ
दुई दिने पाहुना हौँ यो धर्तिमा हामी सबै
शिर ढाक्ने ओत माग्दा भतुवाको चाल भन्छौ
'घायल'ले धेरै जित्यो हार्यो तर एकै प्राण
तिमि पनि हार्छौ किन हरुवाको चाल भन्छौ
दलबीर सिंह बराइली 'घायल'
गुप्तेश्वर-३,रामेछाप
हाल:अबुधाबी,युएई
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भाई दलबीर सिंह जी, चुकि नेपाली भी देवनागरी लिपि में ही लिखी जाती है तो बहुत कुछ तो समझ में आ रहा है, ग़ज़ल की शिल्प की अगर बात करे तो बहुत ही करीने से आप ने मतला से मकता तक में काफिया और रदीफ़ को निबाहने में सफल रहे है, कहन भी जितना समझ सका बेहतरीन लगा, उम्द्दा ख्यालात है, चुपचाप अत्याचार सहने को आपने गलत बताया है यह शे'र बहुत ही खुबसूरत ख्यालात को समाये हुए है |
विस्तार से तो हमारे नेपाली भाषी वन्धु ही ज्यादा बेहतर कह सकते है | शानदार ग़ज़ल हेतु बहुत बहुत बधाई और दाद स्वीकार करे |
राना प्रताप सिंह साहब !
आपको बहुत सुक्रिया अदा कर्ता हुँ कि आप ने नेपाली भाषाओं में लिखा हुवा गज़लें वाचन किया और समझने कि कोशिश कि ! मेरे लिए ए बहुत खुशीका बात है ! इससे ज्याद आपने प्रतिक्रिया भी दिया ओ मेरे लिए बहुत फायादे मन्द है ! अब आनेवाला गज़लोंका कठिन शब्द हिन्दी में वा इंग्लिश मे रुपान्तर कि कोशिश कर्ता हुँ !
गणेश जी 'बागी' साहब ! आपको भी बहुत सुक्रिया मेरे गज़ल बहुत मुस्किल के वाबजुद आपने वाचन किया और कमेन्ट भी किया ! लेख्ने में हिन्दी और नेपाली दोनो देवनागरी लिपि हि हें लेकिन भाषा अलग है ! इसलिए थोडा मुस्किल हो गया ! लेकिन मुझे लगा की आपको अच्छा से समझ आता है ! क्यूँ कि जो आपने बताया वो तो बिल्कुल सहि था ! फिर एकबार सुकिया आप ने किमती समय देकर प्रतिक्रिया लिखा !
आप सभी से फिर मुलाकात करुंगा ! भगवान सबको भला करें !
मीठो गजल घायल सर । मलाई हजुरका सबै गजलहरूले यसरी नै लोभ्याउँछन् ।
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