एक ग़ज़ल
चूड़ी भरी कलाईयाँ, कँगना बसंत है.
सिंदूर भर के मांग में सजना बसंत है.
चारों तरफ घिरी रहें यादों की बदलियाँ,
फिर उनके साथ रात में जगना बसंत है.
बिखरी हुई हो चाँदनी नदिया के तीर पर,
फिर चाँद का चकोर को तकना बसंत है.
मौसम का क्या उसे तो बदलना है उम्र भर,
हर पल तुम्हारे साथ में रहना बसंत है.
पूछा ‘बसंत’ क्या है? तो राधा ने यह कहा,
माला किशन के नाम की जपना बसंत है.
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय Aazi Tamaam जी सादर नमस्कार ,
आपकी हौसलाअफजाई का दिल से शुक्रिया
आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी सादर नमस्कार
आपकी हौसलाअफजाई का दिल से शुक्रिया
सादर प्रणाम आदरणीय बसंत जी सुंदर ग़ज़ल है
सादर
आ. भाई बसंत जी, सादर अभिवादन । उत्तम गजल हुई है नयी रदीफ के साथ । हार्दिक बधाई ।
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